01
धरा पर आए हैं जब हम चुकाकर कर्ज जाएंगे।
रहे खुशहाल धरती मां निभा कर फर्ज जाएंगे।
न होने दें जमीं बंजर चलो इतनी कसम खाएं,
रहे चूनर हरी इसकी लगाकर वृक्ष जाएंगे।
02
जहां खुशियों के हों मेले तन्हा रात क्या जानें।
जिसे दुनियां ही प्यारी हो दिल की बात क्या जानें।
भरा है रोशनी से खुद सितारों की महफिल में,
किसी टूटे हुए तारे का गम वह चांद जाने।
03
शक्ति लक्ष्मी गौरी, सरस्वती नाम रहने दो।
देवी सा नही नारी सा ही सम्मान रहने दो।
तुम्हारे मंदिरों में तो सदा आहत ही होती हूं,
मैं हूं इंसान तुम जैसी,मुझे इंसान रहने दो।
04
बिछड़ना है नहीं आसां बरस कर कह रहा मौसम,
दिसम्बर ढल रहा खुद में तड़फके सह रहा हरदम।
जनवरी आएगी आगे इसी उम्मीद पर चलता,
मगर इक साल दूरी का सदा से सह रहा है गम।
05
इनका न कोई मतलब सभी मतलब के रिश्ते हैं।
किताबों में कहानी में जहां के सब फरिश्ते हैं।
सम्हाले रखना पत्थर को बहुत मंहगे हैं शीशे,
जो एक ठोकर से टूटे वो यहां संबंध सस्ते है।
06
तुम्ही पर प्रेम लिखते हैं बहती भावनाएं भी।
छुपाते पीर मन की और बिरह की वेदनाएं भी।
तुम्हारे ख्याल में खोकर कलम जब भी चलाई है।
लिखी कुछ तो हकीकत ही लिखीं कुछ कल्पनाएं भी
रिंकी कमल रघुवंशी ‘सुरभि’
विदिशा-मध्य प्रदेश