शौर्य गाथा भीमाकोरे गांव की।

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     शोषित,पीड़ित,दलितों के 

     साहस और पराक्रम का 

    गौरवगाथा बतलाने वाला 

   आज विजय स्तंभ खड़ा है।  

      28000 पेशवाओं पर 

       500 सैनिक महार 

      रेजीमेंट की भारी थी। 

      जिसका शौर्य बताने 

भिमाकोरेगांव ने इतिहास लिखा है।

    कलंक धोया है अपने बाजू से 

 जिसे अछूत था समझा जाता।

          दुर्दशा थी ऐसी 

   कमर में झाड़ू गले में हाड़ी

इस रिवाज को कैसे तोड़ा जाता।

   मिला अवसर उसे,भर्ती हुए

 महार रेजीमेंट में जिसे अबतक 

 शोषित, उपेक्षित समझा जाता।

      लांघ सीमाएं परंपरा की 

देश की आज़ादी से जरूरी समझा,

      खुद की अस्पृश्यता और 

           गुलामी से मुक्ति।

        किसने बनाया ऐसी 

  वर्ण व्यवस्था अपने स्वार्थ में,

 पशुता से बदतर जीवन हमारा,

 कम नहीं हम उनसे पुरुषार्थ में।

 आखिर साबित कर ही दिखाया 

      हममें है फौलादी ताक़त, 

        और असीम शक्ति।

    1 जनवरी 1818 ई.को 

        भीमाकोरे गांव में

   गया लिखा इतिहास नया।

     500 की महार सेना ने

   28000 की पेशवा सेना 

        को परास्त किया।

    शौर्य दिवस गया मनाया 

स्वर्ण अक्षरों से विजय स्तंभ पर 

भीम ! नया इतिहास लिखा गया।

                भीम कुमार

       गावां, गिरिडीह, झारखंड