आकाश

आकाश को छूना कौन न चाहता

ऊंचाइयों को देख मन ललचाता

चांद की सुंदरता शीतलता पाता

सूर्य की तेज चमक से जगमगाता।।

बिजली की गर्जना से सबको डराता

तारों सितारों को भी ये टिमटिमाता

नक्षत्रों की चाल में सबको उलझाता

ग्रहण लगा सूर्य , चंद्र का ये समझाता

वक्त की चाल ग्रहों पर निर्भर बताता

उल्कापिंडों को तोड़ धरा पर गिराता

अद्भुत अस्मरणिय नजारे दिखाता

इंद्रधनुष की किरणों संग बतियाता।।

पानी को भी आकाश सोख है जाता

बारीख कर आकाश प्रलय भी लाता

खगों को भी से अपनी छुअन दे पाता

अपने बादलों में चीलों गिद्धों को छुपाता।।

आकाश है ये पहेलियों से घिरा अचंभा

जो सुलझाए आकाश पहेली वो खुद  उलझ ही जाता।।

वीना आडवानी तन्वी

नागपुर, महाराष्ट्र