ख़्यालअच्छा है

मन को बहलाने का ये ख़्यालअच्छा है, 

की उसे बार-बार ये जताना की एक तू ही सच्चा है।।

कभी समंदर की गहराइयों में गोते लगाता है, 

तो कभी आकाश की उचाईयों पे पंख फैलाता है।।

कभी रिश्तो की गहराइयों में इतना डूब जाता, 

और भीगती आंखों से  अपने जज़्बात बताता है।

कभी भूली -बिसरी यादों में ग़ज़ल बन जाता है,

तो कभी आने वाले कल को सपनो में सजाताहै।

मेरा मन आज भी बच्चा है, 

जो नानी -दादी के किस्सों में परियों से मिल आता है,

और बूढ़े बरगद की छांव तले उन खेलो में खो जाता है।

🖋️पिंकी शेखर जैन