अपने जमाने के मशहूर लेखक मुरारीलाल जीवन के 75 वसंत देख चुके। आज अचानक एक सेमिनार में उनकी मुलाकात पुराने मित्र सरोज कुमार से हो गई। दोनों ने एक दूसरे का हालचाल जाना ।सेमिनार समापन के बाद सरोज कुमार ने खुद मुरारी लाल के घर चलने की फरमाइश दी। मुरारीलाल असमंजस में पड़ गए ।
मौके की नजाकत को भांपते हुए सरोज कुमार बोले ” परेशान लग रहे हो मुरारीलाल, सोचा आपके घर चल कर भाभीजी और बच्चों से मुलाकात हो जाएगी। बहुत साल हो गए सभी को देखें”
” तुम्हारी भाभी तो 2 साल पहले ही स्वर्गवासी हो चुकी। दोनों बेटे बहू अपने पुश्तैनी हवेली में रहते हैं ।सब कुछ ठीक-ठाक है” मुरारीलाल बोले ।
सरोज कुमार ” बहुत दुखद समाचार दिया। भाभीजी गुजर गई ।मुझे आज तक कोई खबर नहीं । बच्चों से मिल लेंगे”
बड़े बेमन से मुरारीलाल ने ऑटो बुलवा लिया। दोनों मित्र पुरानी हवेली की ओर चल दिए ।दोनों बतियाते रहे ।रास्ता मालूम नहीं पड़ा। ऑटो एक वृद्ध आश्रम में जाकर रुक गया। वृद्ध आश्रम का बोर्ड देखकर सरोज कुमार ने आश्चर्य व्यक्त किया “अरे यह तो वृद्ध आश्रम आ गया । हमारा यहां क्या काम? मेरी आंखों के सामने तो आपकी पुश्तैनी हवेली घूम रही है”।
मुरारीलाल अपने मित्र सरोज कुमार का हाथ पकड़कर वृद्धाश्रम के अंदर ले गए। एक लंबी ठंडी सांस लेकर बोले “मित्र सरोज कुमार, इस लेखक की पुश्तैनी हवेली कब से बिक चुकी ।पिछले कुछ साल से यही वृद्ध आश्रम मेरा नया घर है”।
इससे पहले कि मुरारीलाल और कुछ कहते सरोज कुमार ने उनके मुंह पर हाथ रख दिया। दोनों मित्र फफक कर रोने लगे।
# रमेश चंद्र शर्मा
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