जब टेस्ट में कम नंबर आते थे
अगली बार आ जायेंगे, कह के छोड़ देते थे
टॉफी पसंद है, ये सोच रोज नई ला देते थे
डाटते डाटते थोड़ा हंस भी देते थे
फिर गुस्सा उनका मनाना, घंटो चलते थे
कभी गुस्सा कभी दुलार,
न जाने कौन सी मिट्टी के बने हो तुम
यार पापा, बड़े अजीब हो तुम।
“शादी का सूट और चलेगा”
कह के कुछ नया नहीं लेते है
जिद्द पे मेरी लेते तो सालो साल, खींच लेते है
हम इन्ही कपड़ो अच्छे है कह कर, हमे नया दिला देते है
जो हम नया लाते, सबको बताते, बड़े शौक से पहनते है
कोई भी रंग की शर्ट हो, वो काली पेंट पहन लेते है
अरे फैशन वैशन से अभी अंजान हो तुम
यार पापा, बड़े अजीब हो तुम।
अगर थके हो तो कहीं नहीं जाते है
पर मेरा काम हो, झट से तैयार हो जाते है
बोलती बोलती थक जाती, पर पापा सुनते जाते है
मम्मी से पूछ कर रोज का हाल चाल ले लेते है
बहुत दूर है सब, अब पापा बातें
कम करते है
“दीक्षित जी के बेटियां काबिल है”सुनते ही गर्व करते है
कुछ भी कहो, बड़े सीधे हो तुम
यार पापा, सच में अजीब हो तुम
आस्था दीक्षित
कानपुर उत्तर प्रदेश