मंत्री, डाकू और पुलिस के त्रिदेव मित्रकूट पर मंदाकनी नदी के किनारे चांदनी रात का रस ले रहे थे। चुप, शांत, निस्तब्ध, एकाग्र एवं नीरव रात में पवन अपने हिलोरे ले रहा था। डाकू के हाथों में समाई दारू की बोतल का ढक्कन पुलिस देव खोल रहा था। साथ में बैठा मंत्री दोनों के कंधों पर हाथ फैलाए झूल रहा था। सोने से पहले इन त्रिदेवों का यहां आकर बैठना वर्षों से चलता रहा है। दारू संग बैठ कर विभिन्न विषय-वासना पर चर्चा करना नित्यकर्म हो गया था। यही वह समय होता जब वो अपने दिन-भर के कारनामों की चर्चा करते। भविष्य की योजनाएं बनाते। कुम्हारिया से लेकर कोलकाता आदि को निपटाने की कल्पनाएं संजोते!
तीन घूंट पेट में उतरते ही मंत्री देव ने कहना शुरू किया- इंद्रप्रस्थ नगर तो हमारे मन में बसा है। सियासत का सारा चक्रव्यूह वहीं रचा बसा है। परंतु इस तरह से नदी के किनारे बैठकर उन्मुक्त बातें करना एक अद्भुत अनुभव है। यहां आकर मन एकदम साफ हो जाता है। मन में बसे बेईमानी, अनीति, अनैतिकता जैसे गंदे भाव और खिल जाते हैं। सारी नीति केवल टिकट पर आकर ही टिक जाती है। हमारी तो एक ही बात है भैया। जसपा से टिकट कटेगा तो छीभपा से लड़ेंगे। छीभपा से कटेगा तो चसपा से लड़ेंगे। अगर चसपा में भी बात नहीं बनी तो प्रोग्रेस से लड़ेंगे, लेकिन देश की सेवा करके ही मानेंगे। टिकट मिलेगा तो देश बदल देंगे। टिकट नहीं मिलेगा तो पार्टी बदल देंगे। पर देश की सेवा करे बगैर नहीं मानेंगे। इतना कहना था कि डाकू और पुलिस देव हंसने लगे।
डाकू ने मंत्री के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा- तुम भी कभी-कभी बहुत दार्शनिक हो जाते हो। हम चोर-डाकुओं का काम खुद करने लग जाते हो। सारे मंत्री डाकू हो जाते हो। हे भैया श्री! आप तो जेबकतरों सी बातें करते हो। आपका कोटि-कोटि धन्यवाद जो आप अपनी जान जोखिम में डालकर इतनी भरपूर मात्रा में देशसेवा करते हो। हमें आपकी बातों का वीडियो बनाकर पूरे ब्रह्मांड में दिव्य ज्योति प्रज्ज्वलित रूप में प्रचलित करना चाहिए। पार्टी-पार्टी, दल-दल छलांग लगाते हुए आप देश सेवा के लिए इतने लालायित होते हैं कि ब्रह्मांड के सभी देव, दानव, सुर, असुर, गंधर्व, नाग, किन्नर, नर, नारी आदि वोटर बनकर कृतज्ञ महसूस करते हैं। यदि आप ऐसा ना करते तो देवराज इंद्र का सिंहासन हिल जाता। ब्रह्मा अपनी समाधि तोड़ देते हैं और शिव जी तांडव शुरू कर देते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर हाहाकार मच जाता और प्रलय आ जाता। सभी पेड़-पौधे जीव जंतु अग्नि में जलकर भस्म हो जाते।
डाकू देव के श्री मुख से ऐसे पावन विचार सुनकर पुलिस श्री के आंखों में आंसुओं का झरना बहने लगा है। पूरी बोतल को दुरस्त करने के बाद पुलिस देव भी अब कहने लगा है- अच्छा डाकू भाई! यह बताओ, कानून तो अनीति पर आधारित होने चाहिए, फिर नैतिक अनीति का निर्णय कैसे? इससे पहले कि पुलिस देव अपने प्रश्न को और स्पष्ट करे; उन्होंने देखा कि दूर से ढोल, ताशे, मजीरे, नगाड़े आदि वाद्य यंत्र बजाते चमचों-दलालों का झुंड उनकी ओर बढ़ रहा है। मंत्री ने कहा- इस चांदनी रात में इनको नींद कहां? दिन-रात नाचेंगे-गाएंगे। हम त्रिदेवों के कीर्तन में ढोल-मजीरे बजाएंगे। तभी खाली पड़ी दारू की बोतल नाचने लगी। जंगल में एक कहकहा फूट पड़ा!
— रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर (305023) राजस्थान