बारहमासा

कोमल  पत्ते  छा  गये, हर  तरुवर की डाल। 

चैता  के  धुन  में  रमे, लोग  बजा  मृदु ताल। 

सर्दी  का  अवसान  है, बहुत  सुखद  संयोग। 

अपनी फसलें देख के,कृषक खुशी हर हाल।।

खेतों  में  फसलें  पकी, शुरू हुआ बैशाख। 

वृक्षों पर फल लग गये,हर डाली हर शाख।

गर्मी थोड़ी  बढ़ चली, फिर भी मौसम नंद।

खगदल उड़ते व्योममें,फैलाकर निज पाख।। 

जेठ  माह  की धूप में,बैठ नीम की छाँव।

बहुत सुहाना  सा लगे,अपना प्यारा गाँव। 

कई  महीने  हो  गये, घर  से  आये मित्र। 

मुझे कहीं मिलता नहीं, वैसा सुन्दर ठाँव।। 

नभ  में  बादल  छा  गये,आया माह अषाढ़।

गर्मी  थोड़ी  कम  हुई, किन्तु पवन की बाढ़। 

लोग पसीने से व्यथित,तरु तल मिले सुकून। 

अपने  सारे  वस्त्र  को, दिये  वदन से काढ़।। 

आया सावन माह जब, बरसे जल घनघोर। 

देख  पिया  को प्रेयसी, कहती  है चितचोर। 

ज्यौं ज्यौं बारिस बूँद स्वर, छेड़  रही है राग। 

त्यौं त्यों आकुल हो रहा,तड़प रहा मन मोर।। 

अंतरिक्ष  में श्याम  घन, मचा  रहे  हैं शोर। 

नदियाँ  सारी  भर  गईं,नहीं  दीखता  छोर। 

लगता भादों आ गया,अति अँधियारी रात। 

अँधियारा कुछ कम नहीं, होने को है भोर।।

क्वार माहमें कम हुआ,गरज घनद घनघोर। 

देव   पक्ष   प्रारम्भ   है, ताप पड़ा  कमजोर। 

दुर्गा  पूजन  हो  रहा, नगर  नगर  हर  ग्राम। 

घडी़  घंट  की  ताल  से, होता मधुरिम शोर।।

अनुपम  कातिक माह में,दीवाली त्यौहार। 

हरि पूजन का माह है , रखते शुद्ध विचार। 

एकादशी का व्रत करें, जपें प्रभू का नाम।

राम  कृपा  होगी  सदा, देंगे  विपदा  टार।। 

अगहन में सर्दी शुरू,फसल पकी है धान। 

देख  कटाई  धान की, हर्षित हुए किसान। 

पवन पश्चिमी चल रही, नहीं मेघ हैं व्योम। 

कृषकों से ही देश है,रखें कृषक का मान।। 

पौष माह  सर्दी बढ़ी, निकले स्वेटर साल। 

सूर्य  सुबह में  कम दिखे, बूढ़े हुए बेहाल। 

कुहरा पाला व्याप्त है,दिखे नहीं चहुँओर।

अंधेरा  छाया  विकट, मानो आता काल।। 

सर्दी  कुछ  हल्की  हुयी, बीता  आधा माह। 

माघ  माह  के दिन  बड़े,बढे़ जनों की चाह। 

मौसम  होता खुशनुमा, सुघर प्रकृति के रंग। 

कुहरा पाला कम हुआ,साफ दिखे सब राह।। 

आया  फागुन  झूम  के, चले पवन बहुरंग। 

सबके  ऊपर  चढ़  गया, नया  बसंती  रंग। 

मनसिज की पीगें बढ़ी,पिक गाये धुन मस्त। 

होली  के  त्योहार  पर, बदले  सबके  ढंग।। 

महेन्द्र सिंह राज

मैढी़ चन्दौली उ.प्र