एस.आई.सी.सी.एल. पर सेबी का आदेश: सहारा का पक्ष

सेबी के हाल ही के आदेश को हम पूर्णतः नैसर्गिक न्याय के विरळद्ध मानते हैं। सेबी ने निर्णय लेते समय एक बार पुनः उन ठोस तथ्यों और परिस्थितियों का संज्ञान नहीं लिया जो 1998 में एसआईसीसीएल द्वारा जारी किये गये ओएफसीडी से प्रत्यक्षतः संबंधित हैं। हम इस मामले को उपयुक्त मंच के द्वारा उठाएंगे।

एसआईसीसीएल ने 1998 में ओएफसीडी जारी करने के लिए कंपनी रजिस्ट्रार, कंपनी मामलों के मंत्रालय, से प्रथम बार लिखित अनुमति प्राप्त की थी। इसके पश्चात हमने संबंधित अधिकारियों से दो अन्य अनुमतियां 2009 में सहारा रियल स्टेट, सहारा हाउसिंग की भी प्राप्त की थीं जिनसे संबंधित वाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है।

                हमने हर कार्य कानून के अनुसार और संबंधित सरकारी अधिकारियों से समुचित अनुमतियां लेकर ही किया था।

. तथापि, एसआईसीसीएल ने ओएफसीडी से संबंधित अपनी सभी देनदारियों का भुगतान कर दिया है और अब 54,804 सदस्यों की ओएफसीडी देनदारी के तौर पर मात्र रळ. 17 करोड़ की देनदारी बकाया है। भुगतान किये गये ब्याज का टीडीएस आयकर विभाग में जमा किया जा चुका है। अतएव सेबी के इस आदेश के द्वारा उस देनदारी का दुबारा भुगतान (दोहरी देनदारी) का मामला बनता है जिसे एसआईसीसीएल ने पहले ही भुगतान कर दिया है।