आगमन ऋतुराज का जब हृदय पर छाने लगा।
प्रकृति की गोद पुष्पित मन महक जाने लगा।।
इस धरा ने पुष्प चूनर
ओढ़ी हरीतिमा के संग
छा गई पीत पत्रों की
महक सरसों के संग
पीत पल्लव सज सुनहरा रूप निखराने लगा।
प्रकृति की गोद पुष्पित मन महक जाने लगा।।
नव कोपल नव पत्र और
नव पुष्प है सज रहे
प्रीत के मन मीत मिलकर
साज कुछ गाने लगे
आज गगन से स्नेह रस यूँ बरस जाने लगा।
प्रकृति की गोद पुष्पित मन महक जाने लगा।।
एक विरहाग्नि हृदय को
इस तरह जलाने लगी।
प्रीत की खामोश रौनक
मन में उठ जाने लगी।।
फिर पिया का साथ पाने को हृदय मचल जाने लगा।
प्रकृति की गोद पुष्पित मन महक जाने लगा।।
अश्रुओं की धार बरसी
नेह विकल बादल बना
मीत से दर्द कहने को
अनंग तन पे सजा
घिर बसंत के रति रंग में मन बहक जाने लगा।
प्रकृति की गोद पुष्पित मन महक जाने लगा।।
डाॅ•निशा पारीक जयपुर राजस्थान