मण्डी जिले की निहरी तहसील के तहत सुकेत की प्राचीन राजधानी पांगणा के दक्षिण में पांगणा-फेगल मार्ग पर नौ किमी की दूरी पर गराट नाला परेसी पंचायत के अंतर्गत स्थित है।घराटनाला-शरचा मार्ग पर स्थित है प्राचीन पजैरठी गांव।इसी गांव में विमली देव,बूढ़ा विंगल और विमलेश्वर देव के दो नाम से प्रतिष्ठित हैं। पौराणिक व ऐतिहासिक सरिता पांगणा के दायें तट पर स्थित पजैरठी गांव के आस-पास अनेकानेक पवित्र स्थल हैं जिनसे कई वैदिक व महाभारतकालीन घटनायें जुड़ीं हैं।पांगणा नदी के किनारे पजैरठी के आस-पास पाण्डवों द्वारा स्थापित घाड़ी का शिव मंदिर, मुक्ति तीर्थ उत्तरवाहिनी,पार्वती माता का स्वरूप छिबरी माता,भार्गव परशुराम द्वारा स्थापित यजुर्वेदीय ब्राह्मण बस्ती पन्याणु व छण्डियारा दुर्गा मंदिर,पज्याणु शिव मंदिर प्रतिष्ठित रहा है। लोकमान्यता है कि भार्गव परशुराम मातृ हत्या के प्रायश्चित के लिये यमुना घाटी के बाद सतलुज घाटी में पांगणा सरिता के सतलुज नदी संगम सरौर से करसोग घाटी में प्रविष्ट हुए। उन्होने स्थान स्थान पर सनातन धर्म के पुन: स्थापना के लिये पश्चिमी हिमालय के विभिन्न स्थानों पर दक्षिण के यजुर्वेदीय ब्राह्मणों की बस्तियों को स्थापित किया। परशुराम ने उपरोक्त स्थानों पर धर्म की पताका फहराकर करसोग घाटी, निरमण्ड क्षेत्र व बुशैहर में काओ,ममेल,नगर नीरथ,नगर,निरमण्ड,लनसा,डनसा,शिंगला व शनैरी में बस्तियां व ठहरियां स्थापित कीं।करसोग में परशुराम ने भार्गव गोत्र के प्रवर्तक भृगु ऋषि का आशीष प्राप्त कर रावण द्वारा लंका में प्रतिष्ठित महाशिव को ममेल में स्थापित किया। करसोग के पूर्ण क्षेत्र में 360 बीघा क्षेत्र में एक रमणीय विशाल झील थी जिसके मध्य में भृगु ऋषि का आश्रम था। ऋषि की तपशीलता से ईर्ष्या ग्रसित देवराज इन्द्र ने ममलेशा नामक किन्नर कन्या को ऋषि के संयम को पराजित करने के लिये भेजा। ममलेशा के संसर्ग से भृगु ऋषि के विमल और अमल नामक पुत्र हुए। अमल संगीत में निष्णांत थे तो विमल ने वेदों की कई ऋचाओं का प्रणयन किया. उन्होने पंचम वेद नामक ग्रंथ की रचना की। संतानोत्पत्ति के बाद ऋषि हिमालय की ओर प्रस्थान कर गये। जबकि ममलेशा ने करसोग में अपने तेजस्वी पुत्रों को पोषित किया। अमल ममलेशा व ऋषि के अमर्यादित सम्बन्धों से उत्पन्न संतान घोषित किये जाने के बाद माता सहित बहिष्कृत जीवन जीने के लिये अभिशप्त हुए।सम्भवत: विमल ऋषि भी समाज के तिरस्कार से पांगणा सरिता के दायें तट पर एकांत व पुष्प-पल्लवादित गुल्म से सुशोभित स्थान पजैरठी में शिव-शक्ति धाम में आश्रम बनाकर रहने लगे।यहां पर विमल ऋषि ने ब्राह्मण धर्म के उत्थान का कार्य किया।यहीं ब्राह्मण बस्ती को धर्मोत्थान के लिये बसाया।
वास्तव में पजैरठी “पजैरा” जाति का अपभ्रंश है। पजैरा जाति ब्राह्मण जाति की ऐसी उपजाति है जो देवी-देवताओं की पूजा के दायित्व का वहन करती है
पजैरठी में विमल ऋषि का गुम्बद-मण्डलीय शैली का लघु मंदिर निर्मित है। मंदिर आयताकार न्याधार पर अवलम्बित है।ढलवां छत्तीय मंदिर का मण्डप क्षेत्र स्तम्भों पर आधारित है। पूरा मण्डप क्षेत्र खुला है।गर्भ गृह के द्वार की चौखटें उत्कीर्णित है। गर्भगृह का आकार वर्गाकार है। गर्भगृह में भूमि में गहरे प्रतिष्ठित शिव का पिण्डी रूप में विग्रह विराजमान है। शिव पिण्डी रूप में महज लगभग दो इंच बाहर है।अत: गृभ गृह में शिव व शक्ति रूपा चतुर्भुजा श्यामाकाली विराजित है।लोगों की आम धारण है कि यह देव बूढ़ा बिंगल है. बूढ़ा बिंगल का मंदिर मण्डी से दस किमी दूर मैगल रूंझ में स्थित है।वहां मान्यता है कि जब शिव कैलाश पर्वत से नीचे उतरे तो जिन जिन स्थानों पर वे रूके वहीं भगवान के प्रमुख सिद्ध मंदिर बने। बूढ़ा बिंगल को मण्डी के सभी देवताओं के दादा माना जाता है. इन्हे शिव के त्रिलोकीनाथ रूप माना जाता है।
बूढ़ा बिंगल का मण्डी शिवरात्रि में विशेष सम्मान रहता है और पूरे महोत्सव में वे राजमहल में प्रवास करते हैं।पजैरठी में शिव रूप बूढ़ा बिंगल व चतर्भुज श्यामा काली का संयोजन इस बात को प्रमाणित करता है कि पजैरठी का यह स्थान पूर्व में भी पुण्य स्थल रहा है।भगवान शिव व माता ने कैलाश से उतर यहां रूक कर विहार किया हो और परिमाणस्वरूप यह स्थल पवित्र स्थल में परिणत हो गया।कालांतर में विमल मुनि ने ममेल से आकर यहां तप किया हो।लोक मान्यता भी इस घटना की पुष्टि करती है।चूंकि लोक मान्यता में यह स्थल “विमली देओ” और विमलेश्वर महादेव नाम से प्रसिद्ध है।कोठी में रखे पुराने कागज पर देवता का नाम विमली देव प्राप्त होता है। ऐसा सम्भव है कि विमल मुनि की तप:स्थली के कारण मुनि “विमली देओ” नाम से प्रचलित हुए हों। बूढ़ा बिंगल शिव रूप में शक्ति सहित गृह में प्रतिष्ठित हैं। यह स्थान एक जागृत स्थान है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि देओरे (लघु मंदिर) में किवाड़ पर ताला नहीं लगता है। लोगों का कथन है कि देव द्वार पर ताला नहीं मानते हैं। जब कभी कोई व्यक्ति मंदिर में चोरी के प्रयोजन से आता है तो मंदिर से चेताने वाली आवाजें आती हैं।
जिससे लोग सजग होकर कर मंदिर का रुख करते है। पूर्व में बीसवीं शताब्दी के सत्तर के दशक में कोठी से चोर मुखौटे व आभूषण चुराकर ले गये।जब देवता को पूछा गया तो देवता ने चोरी हुए सारे सामान के सुरक्षित मिल जाने का आश्वासन दिया। देव वाणी के अनुरूप चोर पूरे सामान सहि्त मण्डी में पकड़ा गया।
विमली देव के लघु मंदिर (देओरे) के किवाड़ महीने के एक दिन संक्रांति को ही खुलते हैं।अन्यथा पुजारी की इच्छा पर कभी भी आवश्यकतानुसार मंदिर खोला जा सकता है। देवता की जातर (क्षेत्र भ्रमण) पर भी देवरे के द्वार खोले जाते हैं।
विमलू देव के पावन स्थल के समीप घाड़ी के शिव मंदिर को मुख्य खुण्डा (मुख्य स्थान) माना जाता है. घाड़ी का पाण्डव निर्मित मंदिर शिखर शैली का भव्य मंदिर है जिसका निर्माण काल कला की दृष्टि से आठवीं-नवीं शताब्दी का लगता है। विमली देव का दूसरा मुख्य स्थान तीर्थस्थ उत्तरवाहिनी के लघु शिखर धनियारा माना जाता है।माहली,चपनोट,परेसी,रोहाड़ा,खून,उकड़ी,घैन्दल,खुडला,शर्चा,फेगल,गलूहणी में भी विमलेश्वर महादेव के “थले”(पूज्य स्थल) हैं।जहाँ हर छ; वर्ष बाद देवता देववाद्यो सहित “छत्रफेर”(दिग्बंधन)परिक्रमा पर निकल कर गांव-गांव के लोगो को आशीर्वाद देते हैं।
मंदिर के ठीक नीचे देवता की बावड़ी है जिसका जल शिंवलिंग के नीचे से निकलता है। बावड़ी में पथ्थर के चौकोर सोपान इसे नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान करते है।मंदिर के आसपास देवदार का छोटा वन है। जबकि पूरे क्षेत्र में ऊंचाई पर पाये जाने वाले देवदार के वृक्षों का नामोनिशान नहीं है।लोगों का कहना है कि मंदिर के आसपास देवदार का उभार व विस्तार स्वत: ही हुआ है। चूंकि देवदार हिमालय में पायी जाने वाला ऐसा वृक्ष है जो शिव व देवताओं को प्रिय है। भगवान शिव,शक्ति व पंचम वेद के रचयिता विमल मुनि की पावन व प्राचीन स्थली मण्डी क्षेत्र का दैवीय आभा का जागृत स्थल है।मंदिर के सामने देवगण मसाणु का श्री विग्रह स्थापित है।काल भैरव और हीरामौहता स्थान देव के रूप में पूज्य हैं। पश्चिमी हिमालय के अंचल में स्थित यह स्थल प्राचीन काल से शिव शक्ति व ऋषि मुनियों का पावन स्थल रहा है।
डा. हिमेन्द्र बाली हिम
इतिहासकार साहित्यकार
नारकण्डा शिमला हि.प्र.
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