अपनों का साथ 

 मेरे पति प्रशांत ने मुझे सालगिरह की बधाई और उपहार में डायमंड सेट देते हुए कहा कि “आज होटल ताज में एक शानदार पार्टी का आयोजन किया है जिसमें मेरे बिजनेस के दोस्त, ऊंचे-ऊंचे पद पर नियुक्त सरकारी अधिकारी, मंत्री सब को आमंत्रित किया गया है”। मैं समय पर ब्यूटी पार्लर से तैयार होकर, महंगे कपड़े, यही डायमंड सेट पहन कर पहुंच जाऊं।यह सब सुनकर खुश होने की बजाय मेरा मन ना जाने क्यों बहुत दुखी और  व्यथित हो गया। मैं खिड़की के बाहर सूर्य उदय का नज़ारा देख रही थी और देखते-देखते उसी में खो गई।

मुझे वो समय याद आ रहा था जब शादी के बाद, मैंने और प्रशांत ने अपनी नई-नई गृहस्थी जमाई थी। प्रशांत एक छोटी सी कंपनी में काम करते थे। हम एक कमरे के मकान में रहते थे। मैं भी घर पर बच्चों की ट्यूशन लेकर थोड़ा कुछ कमा लेती। पैसे कम थे लेकिन खुशियां और एक दूसरे के साथ में कोई कमी नहीं थी।

जब हमारी पहली सालगिरह आई, तो प्रशांत शाम को ऑफिस से घर आते हुए, मेरे लिए मेरी पसंद की एक चॉकलेट पेस्ट्री और लाल गुलाब का फूल लेकर आए। हमने एक साथ खुशी-खुशी पेस्ट्री एक दूसरे को खिलाकर अपनी सालगिरह मनाई और घर में ही मैंने प्रशांत की पसंद का स्वादिष्ट खाना बनाया हुआ था, जो हमने खिड़की से आते पूर्णमाशी की चांदनी रात में बहुत आनंद लेकर खाया था। घर पर ही साथ में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की ग़ज़लों को सुनने का लुत्फ उठाया था। इतनी प्यारी, खुबसूरत शाम जिसको शब्दों में बता पाना बहुत मुश्किल है।

मैं अपनी अतीत की यादों में खोई हुई थी कि तभी मेरा फोन बज गया। ब्यूटी पार्लर वाली का फोन था कि ‘मुझे शाम 5:00 बजे उसके यहां पहुंचना है मेकअप और साड़ी ड्रेपिंग के लिए’। मैं अतीत के हसीन स्वपन से वर्तमान की यथार्थ में लौट आई ।आज हमारे पास पैसे तो बहुत है पर प्यार और साथ की बेहद कमी है।

 दीप्ति मेहता (भोपाल)