हौंसले

 एक सुंदर नारी

चल पड़ी गगन विहारी

था उसे उडना बहुत

दूर दूर क्षितिज से भी दूर

पंख थे छोटे और कोमल

पार करेगी कैसे वह अंबर

फिर भी निकल पड़ी वह 

ले ली  बहुत ऊंची उड़ान

अब चढी थी परवान

 जब चढ़ी परवान तो हुई ज्यादा ही दृश्यमान 

देख उसे सब गिद्ध बोले

ये कौन हैं जो आसमान पर डोले

आए देखने गिद्ध भयानक

दिख गई वो कन्या अचानक

देख गिद्धों को वह भागी उड़ान छोड़

लेकिन एक ही पंजा आया और ले उड़ा दूर

गभराई वह तिलमिलाई भी

लेकिन बच नहीं पाई  आक्रमण से

ले उड़ा वह दूर उसे

उसकी उड़ान के हौसलों से भी ऊपर

बिखर गई वह टूट कर रह गई वह

पंख कतरे गए तो उड़े

कोई भी ऐसे कोई कैसे

दो विकल्पों के बीच झुलती थी वह

तय करना था अपना भावी

हौंसला छोड़ कर बैठ जाती

या अपनी उड़ान को परवान चढ़ाती 

किंतु  रखा उसने हौसला बहुत 

फिर भरी उड़ान वहीं कहीं दूर दूर तक क्षितिज से भी पर

पड गया नभ छोटा उसको

भरी ऐसी उड़ान

गिरने के भय था

 भय से क्यों हौंसला छोड़े

साहस का हर तिनका जोड़े

बढ़ चली वह दूर दूर तक

अपने ध्येय के पथ पर

नारी थी पर कमजोर नहीं थी

टूट ने वाली डोर नहीं थी

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद 

गुजरात