कोई अर्थ नहीं 

चाहने का कोई हक नहीं 

दूर से तुम्हें देखा करता हूं,

नजदीक आने का कोई मतलब नहीं 

याद में तुम्हें पाया करता हूं,

हकीकत में पाने का कोई अर्थ नहीं 

तुम चली गई मुझे छोड़ कर 

विरह में रोने का कोई अर्थ नहीं 

प्रेमसंबंध थे बहुत मजे के

अब आंसू बहाने का कोई अर्थ नहीं नसीब का अच्छा था जिसे तुम मिली,

हाथ की रेखाओं को कोसने का कोई मतलब नहीं 

मैं राह देखूंगा तुम्हारा अंतिम सफर तक

तुम आगे बढ़ गई हो जिंदगी में 

संयोगों को दोष देकर दुखी होने का कोई अर्थ नहीं 

दिल की चाहत छलकती है दरिया की तरह

शायद तुम नहीं समझ सकोगे उसे कलम को व्यर्थ में घिसने का कोई अर्थ नहीं 

तुम भले जीत गई इस लड़ाई में,

मेरी हार के आगे तुम्हारी जीत में कोई दम नहीं 

इस एकतरफा युद्ध का कोई अर्थ नहीं। 

वीरेन्द्र बहादुर सिंह 

जेड-436ए, सेक्टर-12

नोएडा-20131 (उ0प्र0)