काश ज़िन्दगी में काश न होता
काश ये ना होता काश वो न होता
काश हम ज़िन्दगी को जी पाते
जी कहाँ पाए हम इस को
कुछ और बेहतर पाने की
जदोजहद में
बस गुजार ही दी हमने
ये सोचते सोचते ही
काश ये हो जाता
काश वो हो पाता
काश हम ये कर पाते
काश हमे वो मिल पाता
पर ये काश तो अक्सर
काश ही रह जाता है न
सबका पूरा कहाँ हो पाता है
कुछ ख्वाहिशें अधूरी ही
रह जाती हैं
कुछ आकांक्षाएं
ताउम्र मन मे दबी रहती हैं
और साथ लिए हुए ही उनको
एक दिन हम रुखसत
हो जाते हैं इस जहां से..
और फिर वो काश तो आखिर
काश ही रह जाता है..!!
रीटा मक्कड़