‘मेरी पाती ‘

पाती लिख दी मैंने,

हां पाती लिख दी मैंने,

अरे,पाती लिख दी मैंने,

फिर अपनों के नाम।

भर भर आए नैना ।

हां,भर भर आए नैना,

अरे,भर भर आए नैना, 

और छलक पड़े ये जाम।

पाती लिख दी मैंने ………।

एक ही हूक सी उठ रही भारी,

मन रोवे भर किलकारी,

लब बन बैठे हैं छलिया,

फिर ओढ लयी मुस्कान। 

पाती लिख दी मैंने ………।

खुद से हो गई बेगानी,

ना सूरत निज पहचानी,

करती मैं खुद से ही चोरी, 

लिया झूठ का दामन थाम। 

पाती लिख दी मैंने…………।

अंसुअन की लेकर स्याही,

मनपटल पे छबि बनाई,

 फिर न मिलेंगे अपने,

क्यों नही दिया सम्मान ! 

पाती लिख दी मैंने………..।

हूं भीड़ में भी मैं अकेली,

कैसे जीवन बना पहेली !

मेरे मन की न जाने कोई,

मेरी पत्थर दिल पहचान।

पाती लिख दी मैंने………..।

मन पंछी हो रहा बागी,

सब पहरों की चौखट लांघी,

अब कैसे इसे समझाऊं?

और कौन सा पाठ पढ़ाऊं?

अरे,कैसे इसे समझाऊं?

 ये बन बैठा बलवान।

 पाती लिख दी मैने………।

रश्मि रावत