मजदूर दिवस के प्रश्न (कविता)

कड़ी धूप में पसीने की मोती बहाये कोई,

उन मोतियों से अपना घर सँवारे कोई,

थोड़े पैसे और आँसू लिए जिए कोई,

पैसों में डूबकर सब सुख भोगे कोई।

ऐ दुनिया, मई दिवस तो आता-जाता रहेगा,

मगर यह कटु सत्य, झूठ कब बनेगा ?

गिरेंगी बनती दीवारें, मरेगा मजदूर,

धंसेगे बनते पुल, दबेगा मजदूर,

आवाजें दब जाएंगी, सब रहेंगे खामोश,

मौत के साए में ही रहेंगे तंत्र के ये मजबूर।

ऐ दुनिया, मई दिवस तो आता जाता रहेगा

मगर क्रांति का बिगुल बिना स्वर कबतक बजेगा ?

भीषण जाड़े में नहीं काँपेंगी हड्डियाँ उनकी,

बरसात में भी नहीं भीगते कपड़े उनके,

धूप में भी कहाँ जलती हैं त्वचा उनकी ?

अंदर-अंदर रो लेंगे, पर कौन सुनेगा मन की ?

ऐ दुनिया, मई दिवस तो आता जाता रहेगा

मगर आधी सांसों का हाड़-मांस कबतक खटता रहेगा ?

आसमान में उठेंगी ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएँ,

दूर तक पसर जाएँगी सड़कें लम्बी-लम्बी,

झूल जायेंगे तारों पर अनगिनत पुल-पुलिया,

पर शिलापट्टो पर चमकेंगे केवल नेता दम्भी।

ऐ दुनिया, मई दिवस तो आता जाता रहेगा

मगर नवनिर्माण में उनका कुछ भी कबतक नहीं दिखेगा ?

– ज्ञानदेव मुकेश

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