मत थक !
मेरे मनमीत मत थक आज
इस जीवन का देख जरा और प्रकाश
चल होड़ लगा दे फिर से, बैठा क्यूँ रे! तू हताश
ये दूभर,बीहड़ पथ है,इस पर कौन कलियाँ देगा
तुझको आहत करने को शूल ही हर छलिया देगा ।।
मत थक !
मेरे मनमीत मत थक आज
देखों,शिखर हंसे ना तुमपर
मत तुम यह संघर्ष छोड़ो
मन छिन्न-भिन्न हुआ अगर है
नयी गति से फिर उसे जोड़ों ।।
मत थक !
मेरे मनमीत मत थक आज
ये चिंगारी ज्वाला बने अब
कोई कसक शेष ना रह जाये
यूँ खड़ा रह,बस अड़ा रह
यह आधार कहीं ना ढह जाये ।।
मत थक!
मेरे मनमीत मत थक आज,
कर समर्पित अब खुद को
कोई तुमको परवाज दे रहा है
दे दिया है आलोक सारा
अंधेरे को आज ले रहा है ।।
गति, शक्ति का साधन है वह
उसे रचने दो तुम खुद को
मेरे मनमीत मत थक आज
मेरे मनमीत मत थक आज ।।
-अरुण तोमर
मेरठ,उत्तर-प्रदेश