खूबसूरत नज़ारों को निहारा 

कीजिए 

हर शय में ख़ूबसूरती को स्वीकारा कीजिए

दूर तक वादियों में फैली फ़िज़ाएँ 

ह्रदय के भीतर भी  उतारा कीजिए  

कली  बनकर  फूल इतरा रही है

भंवरों  की गुंज़ार को इशारा कीजिए 

छू कर गालों को समीर बहक गई

उलझी ज़ुल्फ़ें यूँ न सँवारा कीजिए

दबी हँसी बनाती क़ातिल उसको

तीखी  नज़रों से न शरारा  कीजिए 

रुठ गए तो फिर क्या हुआ 

प्रार्थना में उन्हें पुकारा कीजिए

हो जाएं वो कुछ रूमानी से तो

उनकी बेअदबी को नकारा कीजिए 

Dr Davina Amar Thakral