पार्थ सारथी  तलास एक नई राह

 हे जग सारथी अब टूट रहा है इंसान ।

 एक बार को पुनः सुसज्जित

 कुरुक्षेत्र का यह मैदान ।।

उस रथ पर तो एक धनुर्धर 

न्याय पताका ले बैठा था ।

 अब तो ना रथ और रथी 

केवल तेरा आसरा है ।।

 असत्य पर सत्य कैसे जीतता 

इसका राह दिखाया था ।

 आज दोनो साथ बैठा है 

जनता भ्रमित सा दिखता है ।।

 धर्म विजय के खातिर तुमने

 वहाँ दिया गीता का ज्ञान ।

अहंकारी और दंभी को

 दिखाया अपना होने का प्रमाण ।।

 अब तो सब दंभी ही 

अपने को समझते हैं भगवान ।

एक बार तुम रथ सजाकर

 करवा दो अपना भान ।।

 हे पीत वसन धारी हे लीलाधर, 

दिखलाओ अपनी लीला ।

 भारतवर्ष की पुण्य धरा 

भूल रही आपकी लीला ।।

 वाका काका पूतना आदि

 शर ताने हो रहा खड़ा ।

 कान्हा के उस बाल रूप का 

जनता कर रहा आशा ।।

 कंस का आतंक अब 

फिर फैला है चारों ओर ।

मुरली छोड़ो कान्हा अब 

शांति कर दो चारों ओर ।।

 जरासंध का अत्याचार अब 

फैल रहा संपूर्ण भूभाग ।

अधर्मी और अताताई का

 संघार कौन करेगा आज ।।

 कुटिलों की कुटिल चालें अब

 एक जगह एकत्रित है ।

इस चक्रव्यूह में फंसे आम जन, 

वेधने की जरूरत है ।।

 तुम तो हो न्याय रथी फिर

 अन्याय कैसे देख सकते हो ।

जरूरत हो तो पुनः एक

 पार्थ तो तैयार कर सकते हो ।।

 पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बैठा,

 पुत्र मोह में द्रोण है ।

अब ना कोई गंगा पुत्र 

और ना विदुर का कोई ज्ञान है ।।

 अब तो बस एक ही चिंता 

सत्ता कैसे लूटें ।

आम जन में भ्रम फैला कर 

जनता को कैसे लूटें ।।

 शकुनि का बस एक काम 

छल और प्रपंच बढ़ाना ।

लाक्षागृह में जो भी हो 

उसमें आग लगाना ।।

 आर्यावर्त कि यह पुण्य धरा

 गवाही इस बात का देता ।

जब जब धरा पर अन्याय बढ़ा

 तेरा ही अवतारण होता ।।

 मन में बस एक प्रश्न –

क्या अन्याय की घड़ा है भरने वाली ?

और अपने क्या एक समर्थ 

पार्थ की खोज कर दी जारी ??

 हाथ जोड़ बस एक निवेदन

 धर्म पताका अब पुनः लहराओ ।

अधर्म का मर्दन कर

 आम जन को सत्य पथ दिखलाओ ।।

कमलेश झा

नगरपारा भागलपुर