औरत, आंसू, इम्तिहान

होती हैं

 बिल्कुल

  अलग औरतें

  पुरुषों से

जीने का एक ही ढर्रा 

लगा देती है दांव पर अपनी पूरी ज़िंदगी

कभी पप्पू की तो कभी पिंकी की 

ख़्वाहिश पूरी करने में 

न गिला न शिकवा 

जला देती है अरमानों को अपने

ममता की धीमी आंच में

भूल जाती है

खूंटियों पर टांग कर 

समग्र इच्छाओं को 

जो झूलती रहती हैं 

 हवा के झोंकों से 

झूल-झूल कर

झूल जाती हैं एक दिन 

कर लेती हैं बर्दाश्त सब कुछ

क्योंकि रचनाशील 

 होती है औरतें 

देती रहती हैं हमेशा इम्तिहान 

 मिट जाती है सृजन के लिए

नहीं है विश्वास विध्वंस में 

प्राप्त करती हैं

गर्भ से ही त्याग, समर्पण, और सेवा का प्रशिक्षण

बैठा दी जाती है 

कोमल मस्तिष्क में इनके

जी सकती हो सुकून से

इस बर्बर समाज में 

रचनाशील होकर ही 

ले सकती हो उतनी ही सांसें

जितनी देर चढ़ी रहोगी

मौन एवं त्याग की चाक पर 

ये औरतें बिना आंसू बहाए 

कंटकाकीर्ण मार्ग पर तलवे में

छाले लिए 

अनवरत चलती रहती हैं

       होती ही

  हैं बिल्कुल अलग ये औरतें 

       पुरुषों से !

डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

शिवपुर वाराणसी

7458994874