ये मुनासिब नहीं, की हम तुमसे पर्दा करे
तकल्लुफ हटेगा नही, बात आगे बढ़ेगी नही ।
किस्से, कहानियों में तेरा, मेरा जिक्र होगा
किताबों में दर्ज होंगे, फिर हमारे सफ़रनामे ।
झील के पानी में, देखा था अक्स तेरा, मेरा
मुझ सा ‘तू’ लग रहा था, तुझ सी ‘मैं’ लग रही थी ।
अक्सर तेरी बेरुखी, जब दिल चीर देती है मेरा
सोचती हूँ, इतने बुरे को ही क्यों बनाया मैने मेरा ।
तेरी याद कहर बनकर, ख्वाबों पे कब्जा है करती
बेदारी में, ख्याल को तकिया बना, फिर हम है सोते ।
रूख़्सत कर दिया उसको, जो था कभी सिर्फ मेरा
कुछ रिश्तों के अंजाम, मुकद्दर ऐसे क्यों है तय करते ।
रूपल उपाध्याय ‘ मन बंजारा ‘
बडौदा ( गुजरात )
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