*चुभन का अहसास*

बहुत दिनों से कुछ चुभा नहीं,

 शायद इसलिए कुछ लिखा नहीं……

उसूलों पर चलकर क्या पाया है दोस्तों,

न उधर के खुश हैं, और इधर भी खुशी नहीं ।

पर मन मे सूकून तो हे यारों,

कोशिश तो बहुत हुई पर मैं बिका नहीं।

झकझोर दे कोई घटना या हादसा

अच्छा है ऐसा कुछ घटा नहीं।।

बहुत दिनों से कुछ चुभा नहीं….

 तपता रहा दोपहर भर दोस्तों ,

ऐक टुकड़ा भी छाँव का मिला नहीं।

ठिठुरता रहा रात भर

एक कंबल उड़ाने वाला भी मिला नहीं।

में भीगता रहा बारिश मे यारों,

तन तो तर बतर हुआ, पर मन भीगा नहीं।।

बहुत दिनों से कुछ चुभा नहीं……

कोशिश तो बहुत हुई,

दरख्त को हिलाने की दोस्तों।

पर जड़ें गहरी थी,दरख्त हिला नहीं।

सोच रहे थे वो यारों ,

इरादे कमजोर कर देंगें ।

पर कोशिश ये उनकी कामयाब हुई नहीं।।

बहुत दिनों से कुछ चुभा नहीं…..

सोचा था उनकी त्वचा नर्म होगी,

सुई भी उन्हें भाले की भाँति चुभेगी,

अफसोस मेरी सोच गलत निकली।

संवेदनशील मानव स्वभाव ही

महानता का परिचायक होता है।

अपने जैसी त्वचा उनकी दिखी नहीं।।

बहुत दिनों से कुछ चुभा नहीं

शायद इसलिए कुछ लिखा नहीं…

             संजय शर्मा उज्जैनी