जब-जब मैं खिलखिलाने लगी
यादें अतीत में ले जाने लगी
बेदर्द हैं ये मेरी यादें
मुझे बेदर्द , दर्द देकर रूलाने लगी।।
सोचती दिल के पटल से यादें कब साफ हो पाएगी
कभी होचती क्या यादें यूंही ताउम्र साथ रह जाएगी
सोचने को तो ना जाने क्या-क्या सोचती
क्या सूखे जख्म़ मेरी यादें हर बार हरे कर जाएगी।।
मानव फितरत होती दर्द को संजोए रोता है
कभी सब भूल हसता तो कभी मानव रोता है
क्यों इंसान ? क्यों ? तेरी फितरत एसी
कोई तो हर जख़्म लिख सुकून पा सोता है।।
दर्द -ए शायर वही होता जो चोट खाया था
अपने हर दर्द जख़्म को शब्दों से सजाया था
वो तो खूद का ही दर्द कम करने को लिखता
दुनिया ने वाहवाही कर दर्द ए शायर बुलाया था।।
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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