“अंतिम श्वांस के दर्शन बन जाओ ”

हो चली है उम्र की शाम मेरे साकी…

सूरज का ढलना शुरू हो जाए,

उससे पहले एक बार चले आओ!

गुम न हो जाऊं मैं इस रात के अंधेरों में..

बन कर जुगनू मेरे वीराने को मिटा जाओ!

यूं तो वर्षों से तेरी महफ़िल सजती है….

इस बार हमें भी अपना मेहमान बना लो!

सजा है मेरे घर का हरेक कोना तेरी यादों से…

इस बार आकर इन यादों को हकीक़त बना डालो!

अब तो एक ही ख्वाइश है ये मेरे हमदम…

मेरी अंतिम श्वांस के दर्शन बन जाओ!

चलूं मैं जब अपने अगले सफ़र पर…

हर सफ़र पर तेरा साथ मिले, ये आश्वासन दे जाओ!

बिखर जाऊंगी मैं रूह बन कर इस दुनिया में…

बस तुम मेरे कण कण में विद्यमान हो जाओ!

छू कर मुझे कृतज्ञ कर दो ये मेरे खुदा…

तेरे इश्क़ की रहमत का दरिया बना जाओ!

गुम न हो जाऊं में इस रात के अंधेरों में…

बन कर जुगनू मेरे वीराने को मिटा जाओ।

अमृता अग्रवाल 

नेपाल(जिला:सर्लाही)