प्रदेश की सियासत से मुस्लिम नुमाइंदगी में कमी आने की वजह पर बहुत से सवालिया निशान हैं।फिलहाल विधानसभा सीट बुरहानपुर से कांग्रेस की ओर से अल्पसंख्यक उम्मीदवार बनाए गए पूर्व विधायक हमीद काजी ने विरोध और दबाव की सियासत के चलते अपना टिकट वापस देना मुनासिब समझा।टिकट की दौड़ में शामिल कांग्रेस नेता ठाकुर सुरेंद्रसिंह उर्फ शेरा भैया ने जिस तरीके से हमीद क़ाज़ी के टिकट का विरोध किया तो पार्टी ने सुरेंद्रसिंह और हमीद क़ाज़ी को दिल्ली तलब किया गया है।जिसके बाद सियासी गलियारों में टिकट बदले जाने की चर्चा जोरों पर है।गौरतलब रहे मध्यप्रदेश में दो प्रमुख दलों ने 377 टिकट का ऐलान कर चुकी है।उसमें से सिर्फ 3 ही टिकट के कांग्रेस ने दिए हैं।लेकिन अब हमीद क़ाज़ी के टिकट को बदला गया तो उनकी जगह पैनल में क़ाज़ी साहब के बेटे नूर क़ाज़ी को टिकट मिलने की संभावना अधिक है।अगर यहां से मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं मिलता है तो इसका असर मध्यप्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं पर पड़ेगा।वहीं दबाव डालकर टिकट बदलने की परंपरा से असंतुष्ट इस तरह के हथकंडे अपनाने लगेंगे।चुनाव से पहले अपने विरोधियों को निपटाने के चक्कर में टिकट के दावेदारों जिन को मायूसी हाथ लगी है वो उम्मीदवारों का विरोध कर अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का ना सिर्फ मनोबल गिरा रहे हैं, बल्कि पार्टी को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं।लेकिन राजनीतिक दल इतने डरे सहमे हैं कि जो पार्टी के निर्णय को क़ुबूल नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्यवाही की हिम्मत नहीं है।बताते हैं कि हमीद क़ाज़ी इस के पूर्व 2003 में एनसीपी के टिकट पर बुरहानपुर से निर्वाचित होकर विधान सभा पहुंचे थे। तभी से हमीद क़ाज़ी की किस्मत बुलंदियों पर पहुंची है। सियासत में उनकी गहरी पकड़ है। 2008 में कांग्रेस और राकांपा के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में बुरहानपुर से प्रत्याशी हुए लेकिन अर्चना चिटनिस से चुनाव हार गए थे। श्री क़ाज़ी वर्तमान में मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पार्टी उन्हें राज्य सभा भेजना चाहती थी लेकिन अल्पसंख्यक कार्ड और बदले राजनैतिक समीकरण के तहत क़ाज़ी के गले में माला डाल दी गई।लेकिन अब नूर क़ाज़ी के नाम का इंतज़ार है।हालांकि पैनल में तीन नाम शामिल हैं।जिसमें कांग्रेस के रविन्द्र महाजन और जिला अध्यक्ष अजय रघुवंशी के नाम भी हैं।नूर क़ाज़ी भी पैनल में हैं।अंतिम दौर के मंथन के बाद नाम पर मुहर लगाने की ज़रूरत है।पार्टी सूत्रों के अनुसार जिन्होंने पार्टी विरोधी कार्य किया है उनके वीडियो फुटेज देखकर कार्यवाही पर विचार किया जा रहा है।खैर…विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की नजर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं पर है, लेकिन दोनों दल मुस्लिम दावेदारों को टिकट बांटने में कंजूसी करते रहे हैं।लेकिन प्रदेश में उनकी जनसंख्या के अनुपात में कोई भी पार्टी राजनीति में हिस्सेदारी नहीं दे रही है,जो लोकतंत्र की जड़ों को कमज़ोर करने का संकेत है।सियासी बिछात का जो मंज़र फिलहाल सामने आ रहा है उससे मुस्लिम समुदाय ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
ताहिर कमाल सिद्दीकी