शुभकामनाओं की गणित

शुभकामनाओं पर गणित लगा रहा हूं कि इसे दूं या नहीं दूं? दूं तो फिर किसे दूं और मेरे देने से उस अगले बंदे का हो क्या जाएगा? शुभकामनाएं कैसे दूं? कितनी दूं? किस तरह की दूं? यह सब गपड़चौथ हुआ जा रहा है। वास्तव में शुभकामनाओं का एक बड़ा कारोबार है। एक इंडस्ट्री है। एक व्यवसाय है। एक भारी सी फैक्ट्री है, जो मौके-बेमौके चलती ही रहती है। किसे शुभकामनाएं देनी है और कितनी शुभकामनाएं देनी है। जिस बंदा-बंदी को मैं शुभकामनाएं भेज रहा हूं उसका कितना रिटर्न मुझे मिलेगा? इन शुभकामनाओं का मुझे क्या लाभ मिलेगा? इसका हिसाब लगा रहा हूं। जिससे मेरी जितनी गरज है, जिससे मेरा जितना स्वार्थ जुड़ा हुआ है, उसकी कैलकुलेशन जमा रहा हूं। यही शुभकामनाओं की केमिस्ट्री है। कमबख्त नया वर्ष हर वर्ष सामने आ जाता है और आकर कहता है कि मुझे मनाओ। मेरे बारे में शुभकामनाएं भेजो। मेरे बारे में नए-नए संकल्प लो। शुभकामनाएं भेजो और संकल्प भी लो। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि शुभकामनाएं भेजूं या संकल्प ले लूं। और संकल्प ले भी लूं तो कौन-कौन से संकल्प ले लूं। और उन्हें कितनी देर में तोड़ दूंगा, फिर उन्हें मरोड़ दूंगा या फिर किसी और काम से जोड़ दूंगा। कमबख्त बड़ी भेजा-मारी है। सारी दुनिया को शुभकामनाओं की एक बीमारी है।

मन कह रहा है कि एक शुभकामना सबके लिए चेप दूं। कोई दुख ना हो, कोई गम ना हो। कोई आंख कभी नम ना हो। कोई दिल किसी का ना तोड़े। कोई किसी का साथ ना छोड़े। बस प्यार का दरिया बहता हो। वर्ष 2023 बस ऐसा ही हो। लेकिन यह भी कोई शुभकामना हुई? अगर कोई दुख नहीं होगा, कोई गम नहीं होगा तो फिर यह पुलिस-वकील और थाने-कोर्ट कचहरी वाले क्या मजीरे कूटेंगे? आपसी लड़ाई-झगड़े नहीं होंगे तो बेचारे थाने और कोर्ट वाले अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे? महंगी दारू पीकर न्यू ईयर कैसे मनाएंगे? किस तरह से अपने कुत्तों को घुमाने के लिए लंदन की टेम्स नदी के किनारे जाएंगे? बहुत भारी बेरोजगारी हो जाएगी। अगर किसी के दुख नहीं हुआ, कोई गम नहीं हुआ तो बड़ी दुर्घटना हो जाएगी। अगर कोई किसी का दिल नहीं तोड़ेगा, बस प्यार ही प्यार जताएगा तो फिर अमेरिका ने इतने गोला बम बारूद यूं ही बनाए हैं क्या? चीन ने अपनी मिसाइल है यूं ही गड़गड़ाई हैं क्या? तोप-तमंचों के कारखानों का क्या होगा? दिल तोड़ने से लेकर दल तोड़ना हमारा राष्ट्रीय कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का क्या होगा? नफरत ही तो जीवन का आधार है। लड़ाई-झगड़ों से ही तो दुनिया चल रही है। खून-खराबों से ही तो राजनीतिक पार्टियां पल रही है। लूट-खसोट से ही तो पूरा व्यापार चल रहा है। बिजनेस का मूल मंत्र ही झूठ, अन्याय और स्वार्थ पर टिका है। हर एक आदमी अपने-अपने स्वार्थ के लिए अपने-अपने ढंग से बिका है। फिर ये शुभकामनाएं कैसी? इसलिए भैया! शुभकामनाएं वही दो जो मन को भाए। नेट दनादन चले और डाटा कभी ना घटे, इसकी हार्दिक शुभकामनाएं! बाकी शुभकामनाओं को ओढ़ें या बिछाएं!

— रामविलास जांगिड़ (मो 94136 01939),18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर (305023) राजस्थान