ध्यान, एकाग्रता जिसे प्राचीन समय में तपस्या कहा जाता था, एक महती प्रक्रिया है। ऋषि मुनियों का ध्यान भंग करने इंद्र देवनर्तकियों को भेजता रहा। परिणाम स्वरूप कई तपस्यायेन भंग हुईं और शकुंतला जैसे लोगों का जन्म भी हुआ। मतलब ध्यान को भटकने से इधर-उधर होने से रोकना अपने आप में कला है और सत्ताधारी इंद्र जैसे नेता लोग ध्यान भटकाने का भरपूर प्रयास करते नहीं थकेंगे।
महंगाई से जूझती जनता का ध्यान तेल, नून, लकड़ी की कीमतों से हटाने में माहिर हमारे भक्त मीडिया और नेताओं का तो जवाब नहीं। पेट्रोल, डीजल, गैस की आसमान छूती कीमतें, अंतरिक्ष से बातें करते दलहन और तिलहन के मूल्य और जीना मुहाल करती सुरसा के मुंह सी महंगाई से त्रस्त आम जनता के आक्रोश का ध्यान भटकाने का काम बखूबी हो रहा है। कुछ न मिला तो एक हीरोइन की कम केसरिया वेशभूषा पर बवाल मचा दिया जैसे कोई अंतरराष्ट्रीय और अपरिहार्य समस्या हो। इस देश में लाल रंग के कपड़े बाबा साधु पहनेंगे और गेरुआ केसरिया रंग के कपड़े योगी महात्मा पहनेंगे, क्या ऐसा कोई पेटेंट है? छोटे बच्चों जैसी हरकतें करके ध्यान, महंगाई और अन्य महत्वपूर्ण बातों से भटकाये जाने की यह कोशिश नहीं तो और क्या है?
हर घटना हर जरिया को न्यूज़ बना देना या किसी राई का पर्वत बनाकर पेश करने में भक्त मीडिया का जवाब नहीं। एक ओर धर्म संस्कार के प्रति कट्टरता का जामा पहनाते मगर संस्कारों को तोड़ मरोड़ करते नेताओं को हम किस श्रेणी में रखें? आपकी सहनशक्ति इतनी कमजोर है कि एक कार्टून के चलते आग बबूला होकर उस कार्टूनिस्ट पर मामला ठोक दिया। नेहरू जी के जमाने में आर के लक्ष्मण प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट थे, जिनके बनाये कार्टूनों का नेहरू जी स्वयं प्रशंसा करते और मजे लेते थे। लक्ष्मण ने कई कार्टून नेहरू जी और उनके प्रशासन पर भी बनाए पर नेहरू जी कभी भी उग्र नहीं हुए। कार्टून भी ध्यान भटकाने के लिए काम आने वाला हो गया मुद्दा हो गया।
ध्यान भटकाना इस बात पर भी कि विमुद्रीकरण को सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा। ध्यान इसके लिए भी भटकाते हैं कि परंपरावाद को प्रोत्साहन देने वाले बड़े भैया का दाहिना कंधा भी परंपरावाद पर कमेंट करता है। ध्यान बाबाजी के बयानों से भी भटकता है क्योंकि साधु संत होने के बावजूद उनके मन में स्त्रियों के प्रति जो भावना बाहर आ गई है उस पर थू थू हो रही है। महंगाई इतनी बढ़ने के बावजूद, आम जनता के त्राहि त्राहि पर भी वित्त मंत्री का खुद का पीठ थपथपाना, बड़े भैया का विश्व आर्थिक प्रगति में देश का पांचवे नंबर पर होने का ढोल बजाना, उन गरीबों के लिए सेहतमंद हो सकता है जिन्हें वे मुफ्त का राशन देकर नकारा बनाने और सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन सेवानिवृत्त सरकारी कर्मी, गेहूं के साथ घुन की तरह की पिसती मध्यवर्गीय जनता या त्रिशंकु सा लटका सारा मध्यमवर्गीय वालों के लिए तो जरा भी राहत नहीं, संतोष नहीं, खुशी नहीं।
ध्यान भटकाऊ बातों से हम।बाहर आएं और अपनी तपस्या कार्टूनों, बयानों और छाया चित्रों से भटकने न दें। जो गलत है उसे गलत कहें। जो सही है उसे सही बोलें, वरना रुपए और डॉलर की तरह लुढ़कते रहोगे और वित्तमंत्री जी इसे सकारात्मक सक्रियता भरी बात कहने से भी नहीं चूकेगी। ध्यान किधर है? वहीं रहे जहां होनी चाहिए।
डॉ टी महादेवराव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)
9394290204