मैं हूं वैदेही तुम्हारी , राम बन कर रह सको जो,
उर्मिला सी त्याग मुझमें,हो लखन तुम कह सको जो।
कृष्ण जैसा प्रेम कर लो,रुक्मिणी भी हूं तुम्हारी,
पांच गुण तुम में ही देखूं,पांडवी भी हूं तुम्हारी।
मैं सुनैना बन के रह लूं,जो जनक सा स्नेह दे दो,
मैं सती बन जल भी जाऊं,शिव के भांति ताप दे दो।
राधा बन मैं राह देखूं,जो कन्हैया सा हो प्यारे,
इस जन्म का बात छोड़ो,उस जन्म में भी तुम्हारे।
देवकी जैसी भी हूं मैं ,साथ दो वासुदेव जैसा,
लक्ष्मी भी,मैं तुम्हारी,तुम हो गर विष्णु के जैसा।
तुम रहो ब्रह्मा के जैसा,सरस्वती मैं हूं तुम्हारी,
विघ्न को हर लो जो मेरे,रिद्धि सिद्धि हूं तुम्हारी।
छाया भी बन जाऊं तेरी,सूर्य का तुम ओज दे दो,
कुंती भी हो जाऊंगी मैं,इंद्र का गर्जन जो दे दो।
जो कहोगे वो करूंगी,अनुगामनी बनके तेरे,
सुख में,दुःख में,साथ रहकर,थामकर दामन रखूंगी।
चंद्र जैसा हो चमक गर,रोहिणी मैं हूं तुम्हारी
रूप हो जो भी तुहारा, मैं तो बस! पूजा तुम्हारी,
पूजा भूषण झा, वैशाली, बिहार।