नफरत का प्रसार; पठान का उद्धार

प्रायोजित नफरत का कमाल। 

पठान  हो रहा अब मालामाल। 

मोहब्बत हो गई हैं अब तो भूत,

नफरत हो रही ग़ज़ब फलीभूत। 

एनिमेशन और कम्प्यूटर मिडिया मेनेजमेंट टेक्नोलॉजी के कमाल से लबरेज पठान बहरहाल मुझे तो पसंद नहीं आई। जिस बेशरम रंग के लिए धमाल मचाई गई थी, उसका हल्का सा स्वरूप ये बदला गया हैं, कि केशरिया रंग की बिकनी वाला दृश्य बाहो मे नही है, परंतु गाने के अंत में हिरोइन को जाते हुए उसी बिकनी में दिखाया गया हैं। यानी कि प्रायोजित नफरती चिंटु॓ओं के हाथ में झुनझुना थमा दिया गया, और नफरत मोहब्बत में बदल गई। 

फिल्म का आंकड़ा 400 करोड़ के ऊपर पहुंच गया है। अब सब के सुर बदले हुए हैं, विश्व हिंदु परिषद और केंद्रीय मंत्री तक मौन है। साफ दिखाई देता हैं कि देश में फैलाई गई नफरत भी प्रायोजित थी। और क्यों न हो जब कुर्सी के लिए नेता भक्तों का सदुपयोग कर नफरत फैला सकते हैं, तो बॉलीवुड क्यूं वंचित रहें? मोहब्बत होम्योपैथिक दवा हैं, धीरे धीरे दिलो मे घर करती हैं, परंतु नफरत एलोपैथिक हैं तत्काल परिणाम देती हैं। यानी तुरंत दान महाकल्याण, नेताओ का बोया बीज फल दे रहा हैं, तो फिर इस फल का रसास्वादन बॉलीवुड करे तो क्या बुराई है।

आप भी फिल्म देखें तो समझ जाएंगे कि फिल्म को चर्चित और प्रसिद्ध बनाने के लिए और आर्थिक रूप से सुपर डूपर हिट करने के लिए सिर्फ नफरत का ही हाथ हैं। शाहरुख खान चूंकि हीरो हैं उसे तो देश भक्त बताना ही था, परंतु उसके अलावा सारे प्रभावी पात्र नफरत के पैरोकार हैं। खाली अंत में “जयहिंद” और “भारत माता को सलाम” कह देना फिल्माने से फिल्म राष्ट्र भक्ती और पेट्रियोटिक नहीं हो जाती, उसके लिए फिल्म हकीकत और उपकार जैसी सोच और फिल्मांकन चाहिए। 

आप और हम कुछ नहीं कर सकते, जब अडाणी जो देश में गोतम नाम रखकर रसातल में देश को ले जा रहा है और हम मौन है तो फिर इन बेचारे बॉलीवुड टॉलीवुड लॉलिवुड ने हमारा क्या बिगाड़ा है, बेचारे मनोरंजन ही तो कर रहें हैं, उससे ज्यादा मनोरंजन तो रोज मंचो पर देश के बड़े बड़े नेता कर रहें हैं, हम उन्हें भी सहन.कर देश सोंप ही रहें हैं। देर आयद दुरस्त आयद की कहावत एक दिन ज़रूर फलीभूत होगी जब मोहब्बत रूपी होम्योपैथिक दवा का असर होगा,ये मेरी आस्था और ईश्वर पर भरोसा हैं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। हम वर्तमान में इस नफरती यूग के पोषक है, आने वाली पीढी हमे कोसेगी और माफ नहीं करेगी। एक शायर ने कहा है “अब भी न संभलोगे तो मिट जाओगे ओ हिंदोस्तां वालों, तुम्हारी दास्तां तक न होगी दास्तानों में।”

– पंडित मुस्तफा आरिफ