प्रणय विवशता

सागर   सी  पलकें   तेरी,

मंद हँसी खिलती मुख पे।

 तेज भानु की किरणों सा,

शीतलता चन्द्र हास नभ पे।।

सौरभ सुंदर सी शांत सजल,

नयनों  में  अविराम थम के।

बहती है  नेह  नदी हर पल, 

पलकों पे दर्द लिए जग के।।

गहन  वेदना इस  धरती की,

गहराती अंतस  में  सर  के।

प्रणय  विवशता  सागर सी,

उठती उर्मी  उदधि  उर  से।।

मर्म   भेदती  विकट  निशा,

अविरल काम सरित तर के।

बन जाती स्नेह सुधा सीपी,

ये बूँद स्वाति जल की भर के।।

अमरत्व अभिराम अमर सत्वर,

मिल  जाता  मानस  के मन से।

क्षणिक  सरल  नश्वरता  संग,

खो जाता आत्म  विभव जन में।।

 डाॅ•निशा पारीक जयपुर राजस्थान