खुली हवा में सांसों को आज़ादी
दहलीज़ लाघंने की आज़ादी
दोस्त बनाने की आज़ादी
हमसफ़र चुनने की आज़ादी
मन के विचारों को आज़ादी
दिशा को नया आयाम देने की आज़ादी
घर से दफ्त़र की आज़ादी
क़दम से क़दम मिलाकर चलने की आज़ादी
बहुत कुछ मिला है आज़
जो शायद पहले मुमकिन न था
पर फ़िर भी आज़ाद होते हुए भी
स्वयं के विचारों के गुलाम क्यों ?
मानसिकता सिमटी है
घृणा, द्वेष में लिपटी है
संस्कृति नाम की रची है
मानवता कहां बची है
अपनेपन का दिखावा है
फ़िर भी कहते हो मोह माया है
ऐसी आज़ादी की तलाश करो
जो विचारों को पहले स्वतंत्र करे
अपने विचारों की इकाई पार कर
परिवार,सामाज,राज्य
और फ़िर राष्ट्र का उद्धार करे।
अंशिता त्रिपाठी
मुम्बई