:: पांच आचार्यों के निर्देशन में पांच घंटे तक चली विभिन्न क्रियाएं; शहीदों के लिए भी किया तर्पण ::
इन्दौर। विमानतल मार्ग स्थित विद्याधाम का प्रांगण बुधवार को विद्वान आचार्यों के समवेत मंगलाचरण-मंत्रोच्चार एवं श्लोक-मंत्रो की मंगल ध्वनि से गूंजता रहा। श्रावणी उपाकर्म की तमाम विधियों में करीब 200 नए और 800 से अधिक पुराने साधकों ने लगभग पांच घंटों तक भाग लेकर नूतन यज्ञोपवीत धारण किए, बल्कि जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों के लिए प्रायश्चित, दिवंगतों के लिए तर्पण, देवताओं के लिए सप्तऋषि पूजन, नए वर्ष में नीति और मर्यादा के मार्ग पर चलने के लिए हेमाद्रि संकल्प जैसे शास्त्रोक्त प्रावधानों का पालन भी किया।
आश्रम के संस्थापक ब्रम्हलीन स्वामी गिरिजानंद सरस्वती ’भगवन’ की प्रेरणा से महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के सान्निध्य एवं आचार्य पं. राजेश शर्मा और पं. योगेश पाराशर के निर्देशन में सुबह 10 बजे से मंगलाचरण एवं पवित्रीकरण के साथ श्रावणी उपाकर्म का श्रीगणेश हुआ। आश्रम ट्रस्ट के पं. दिनेश शर्मा, यदुनंदन माहेश्वरी, रमेश पसारी, राजेन्द्र महाजन, रमेश राठौर, सत्यनारायण शर्मा सहित विद्याधाम परिवार के सदस्यों ने तीर्थस्थलों, नदियों और सूर्य देवता की प्रार्थना से उपाकर्म का शुभारंभ किया। पांच विद्वानों ने सबसे पहले दशविध स्नान की रस्म संपन्न कराई, जिसमें साधकों ने मिटटी, गोबर, भस्म, फल, दूध, पंचामृत, गोमूत्र, तीर्थजल एवं दुर्वा से स्नान किया। शरीर प्रक्षालन-शुद्धिकरण के बाद ध्यान संध्या, सूर्य उपासना तथा तर्पण की क्रियाएं संपन्न हुई। देवों, ऋषियों, माता-पिता, मित्रों, सम्बंधियों सहित सभी दिवंगतों के साथ देश के लिए शहीद होने वाले सैनानियों के लिए भी तर्पण किया गया। प्रायश्चित कर्म और सप्तऋषि पूजन के बाद नए यज्ञोपवीत धारण किए गए। सग्रहमख गायत्री महायज्ञ एवं दान विधि के साथ इस दिव्य अनुष्ठान का समापन हुआ। स्वामी गिरिजानंद सरस्वती वेद-वेदांग विद्यापीठ के लगभग 80 नए वेदपाठी बालकों ने पहली बार इस प्रक्रिया में उत्साह के साथ भाग लिया।
:: हेमाद्रि संकल्प ::
आचार्य पं. राजेश शर्मा ने बताया हेमाद्रि संकल्प श्रावणी उपाकर्म का मुख्य प्रावधान है। इसमें जीवन के प्रत्येक पाप, ताप और संताप से मुक्ति, मानव एवं गौहत्या जैसे जघन्य पाप, गुरू की निंदा, माता-पिता की उपेक्षा, अखाद्य पदार्थों के भक्षण, परस्त्रीगमन सहित अनैतिक कर्मों से दूर रहकर शुद्ध सात्विक चरित्र पालन का संकल्प दिलाया गया।
:: प्रयुक्त सामग्री ::
श्रावणी उपाकर्म की सभी विधियों में गंगाजल, पंचगव्य, कुशा, दुर्वा, अजीझाड़ा, तिल्ली, पंचामृत, नेवैद्य, फल-फूल, पूजा सामग्री का प्रयोग प्रत्येक साधक के लिए किया गया।
:: करीब 1 हजार साधक ::
आज संपन्न श्रावणी उपाकर्म में 80 वेदपाठी एवं 900 अन्य नए-पुराने साधकों ने यज्ञोपवीत धारण किए। सबसे कम आयु के 10 वर्षीय बालक से लेकर 80 वर्षीय वृद्ध भी इनमें शामिल थे।