लोकसभा चुनाव-2024: 16 मार्च से 1 जून तक विवादों में घिरा रहा केंद्रीय चुनाव आयोग

नई दिल्ली । लोकसभा चुनाव-2024 में केंद्रीय चुनाव आयोग पूरे समय विवादों में घिरा रहा। विवादों का सिलसिला शुरू हुआ 16 मार्च को आम चुनाव की घोषणा से पहले जब अचानक ही चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के कारणों का आज तक पता नहीं चल सका है, लेकिन इसने देश की सियासत में भूचाल ला दिया। इसी तरह से पीएम नरेंद्र मोदी के आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का मामला हो या फिर पहले चरण के मतदान का डेटा आयोग द्वारा 11 दिन बाद जारी करना हो और वह भी छह फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी के साथ।
विवाद शुरू हुआ 9 मार्च को जब लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले आयोग के दो चुनाव आयुक्त में से एक अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया। सवाल उठे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि चुनाव आयुक्त गोयल को रिटायर होने से पहले ही अपने पद से गोपनीय तरीके से इस्तीफा देना पड़ा। यह मुद्दा लगातार सुर्खियों में बना रहा। हर कोई इसका कारण जानना चाह रहा था।
16 मार्च को केंद्रीय चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के लिए की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी जब गोयल के इस्तीफे का सवाल उठा तो मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने इस्तीफा देने का कारण गोयल का व्यक्तिगत फैसला बताया। इनसे पहले 14 फरवरी को आयोग के दूसरे चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे रिटायर हो चुके थे। फिर इस तरह से मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के बाद दो चुनाव आयुक्त में से अकेले बचे गोयल द्वारा इस्तीफा देने से एक नया विवाद खड़ा हो गया था।
आयोग के विवादों में आने का दूसरा बड़ा कारण दोनों चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर था क्योंकि दोनों चुनाव आयुक्तों के ना रहने से सवाल उठने लगे कि क्या ऐसे में अकेले राजीव कुमार ही लोकसभा चुनाव करा सकते हैं? इसी बीच 14 मार्च को अचानक पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति द्वारा रिटायर्ड आईएएस ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति कर आयोग की रिक्त सीटों को भर दिया गया। इन्हें लेकर हंगामा मचा गया। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे अधीर रंजन चौधरी ने इस पर असहमति जताई कहा कि पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय चयन समिति में पीएम के अलावा दूसरे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और तीसरे वह खुद थे। चौधरी ने कहा था कि भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी चुनाव आयुक्तों की चयन समिति का हिस्सा होना चाहिए थे। तभी इसमें पूरी तरह से पारदर्शिता वाली बात होती।
पहले चरण के लिए 19 अप्रैल को वोट डाले गए लेकिन आयोग ने इसका अंतिम आंकड़ा 11 दिन बाद 30 अप्रैल को जारी किया। वह भी छह फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी के साथ। विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया इससे आयोग की विश्वसनीयता और साख पर सवाल खड़े हो गए। क्योंकि, 19 अप्रैल को पहले चरण के लिए हुए मतदान के दिन शाम 7 बजे 60.03 फीसदी मतदान होना बताया था। जोकि 11 दिन बाद आयोग द्वारा जारी किए गए वोटिंग टर्नआउट में 6.11 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 66.14 फीसदी मतदान होना बताया। इसी तरह से 26 अप्रैल को दूसरे चरण के लिए हुए मतदान के दिन शाम 7 बजे 60.96 फीसदी मतदान का आंकड़ा 30 अप्रैल को 6.19 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 66.71 बताया। अन्य चरणों में भी टर्नआउट बढ़ा हुआ बताया था। आज तक सभी सातों चरण में हुए मतदान का अंतिम आंकड़ा आयोग द्वारा जारी नहीं किया गया है।
21 अप्रैल को पीएम मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी भाषण के दौरान की गई टिप्पणी को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बताते हुए कांग्रेस, भाकपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसकी शिकायत आयोग से की थी। मामले में आयोग पर आरोप लगे कि उनकी शिकायत पर आयोग ने कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई की भी तो पीएम मोदी के खिलाफ कोई नोटिस जारी करके नहीं बल्कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को नोटिस जारी किया। इसमें भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मिली शिकायत पर भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी नोटिस जारी करके। जिसमें पीएम मोदी से व्यक्तिगत रूप से एमसीसी उल्लंघन के लिए जवाब नहीं मांगा गया, बल्कि पार्टी अध्यक्षों को नसीहत देने के साथ उनसे जवाब मांगे गए।
अंतिम चरण के लिए हुए मतदान खत्म होने के बाद चार जून को मतगणना से पहले 1 जून को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के ऊपर कथित रूप से 150 डीएम और कलेक्टरों को धमकाने का आरोप लगाया गया था। इसे लेकर आयोग पर कई तरह के तीखे हमले किए गए, जिसमें काउंटिंग को प्रभावित करने जैसे आरोप लगाए गए। इस मुद्दे को लेकर खुद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी जयराम रमेश का नाम लिए बिना सख्त लफ्जों में कहा कि बिना सबूत के आरोप लगाना उचित नहीं। आयोग ने उनसे इस पोस्ट के लिए जवाब भी मांगा। कांग्रेसी नेता को अतिरिक्त समय ना दिए जाने को लेकर भी आयोग विवादों में रहा। ईवीएम और वीवीपैट को लेकर भी आयोग पर सवाल उठे रहे। हालांकि, आयोग ने इस तरह के उठे सवालों पर हर बार यही कहा कि ईवीएम में किसी भी सूरत में सेटिंग नहीं हो सक