इन्दौर हाईकोर्ट की इन्दौर बेंच द्वारा एक संवेदनशील याचिका पर समय रहते निर्णय सुना दिए जाने के चलते एक बीमार और मौत से संघर्षरत मरीज को नई जिंदगी मिल गई है। मामला नाबालिग बेटी द्वारा अपने बीमार पिता को अपना लीवर दान करने का था। चिकित्सकों द्वारा नाबालिग बेटी को शारिरिक एवं मानसिक रूप से अपने पिता को अपना लीवर देने के लिए योग्य अर्थात फिट क़रार दिया था परन्तु उसके नाबालिग होने के चलते कानूनन तौर पर वह अयोग्य हो रही थी। इस मामले ने संवेदनशीलता की हद तो तब पार कि थी कि बेटी दो महीने बाद ही बालिग हो रही थी तब उसे कानून भी अपने पिता को अपना लीवर दान करने से नही रोक सकता था परन्तु उसके बीमार पिता के पांच डाक्टरों के अनुसार पन्द्रह दिन से ज्यादा का वक्त नहीं था नहीं तो उनकी स्थिति क्रिटिकल हो सकती थी। मजबूरन उसे अनुमति के लिए कोर्ट के दर पर आना पड़ा जहां लगातार तारीख पर तारीख देने के बावजूद कोर्ट ने उसे समय रहते अनुमति दे दी थी और उसने अपने पिता को अपना लीवर दान कर उनकी जिंदगी बचा ली। हाइकोर्ट अनुमति के बाद 28 जून को नाबालिग बेटी प्रीति का लीवर उसके बीमार पिता शिवनारायण बाथम को डाक्टरों ने ट्रांसप्लांट कर दिया था। ट्रांसप्लांट के बाद अब पिता की हालत में सुधार हो गया है। उन्हें एक सप्ताह के आब्जर्वेशन बतौर आइसीयू में रखा गया था जहां से उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। वहीं बेटी को भी अस्पताल से डिस्चार्ज कर घर भेज दिया गया है। परिजनों के अनुसार पिता इस बात से खुश हैं कि बेटी उन्हें लिवर दे पाई है। वह कहते हैं कि बेटी ने मेरी जान बचा ली है। हालांकि अभी एक सप्ताह और उन्हें डाक्टरों की निगरानी में ही रहना है। वहीं अस्पताल से डिस्चार्ज हो बेटी प्रिती घर पर अपने परिवार के साथ है और परिजनों को हिम्मत दे रही है कि अब पापा जल्दी ठीक होकर घर आ जाएंगे। लीवर ट्रांसप्लांट करने वाले सर्जन डा. अमित बर्फा के अनुसार प्रीति को तो डिस्चार्ज कर दिया गया है। वहीं शिवनारायण का इलाज अभी चल रहा है। उन्हें आइसीयू से वार्ड में शिफ्ट कर दिया है। उनकी हालत में सुधार हो रहा है। एक सप्ताह अभी और उन्हें निगरानी में रखा जाएगा। इसके बाद हालत में सुधार होता है तो उन्हें भी घर भेज दिया जाएगा।