विश्व आदिवासी दिवस

आदिवासी जीवन शैली प्रकृति आधारित , संस्कृति, भाषा, पर्व-त्योहार, पूजा पद्धति बताती है कुशल आपदा प्रबंधन, सुरक्षा, एवं विकास – योग गुरु महेश अग्रवाल
जीवन में सरलता का मतलब हुआ- अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं और सीमित सुविधाओं के हिसाब से जीवन निर्वाह करना।
भोपाल । आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों की सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक सुरक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है। पहली बार आदिवासी या मूलनिवासी दिवस 9 अगस्त 1994 को जेनेवा में मनाया गया। आदिवासी शब्द दो शब्दों आदि और वासी से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। पुरातन संस्कृत ग्रंथों में आदिवासियों को अत्विका नाम से संबोधित किया गया एवं भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति पद का उपयोग किया गया है। किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के निम्न आधार हैं- आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक पृथक्करण, समाज के एक बड़े भाग से संपर्क में संकोच या पिछड़ापन । आदिवासियों की देशज ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध है।
किसी भी जाति की पहचान समाज में उसके विशिष्ट कार्यों से होती है, कार्य ही व्यक्ति, जाति, जनजाति को समाज में प्रतिष्ठा प्रदान करता है। सोने का काम करने वाला सोनार, लोहे का कार्य करने वाला लोहार, मछली पकड़ने वाला मछुवारा नाव चलाने वाला नाविक आदि इसके कार्यों से इनकी पहचान है। किन्तु ये कैसी अजीव है कि वनस्पति की विभिन्न जड़ी बूटियों की कुशल जानकारी रखने वाला उन जड़ी बूटी की पहचान कर घने जंगलों से तोड़कर लाने वाला आर्थिक शोषण का जबरदस्त शिकार है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया क्या योग दुनिया की गरीबी की समस्या का समाधान कर सकता है? अगर हर आदमी गरीबी चाहने लगे तो संसार स्वर्ग बन जायेगा। लेकिन यहाँ तो हर कोई अमीर बनने की कोशिश में जी-जान से लगा हुआ है। सभी कालों में, सभी देशों के सन्तों ने कहा है कि सच्चे व्यक्ति का जीवन आत्म स्वीकृत गरीबी से भरा जीवन होना चाहिये। वस्तुतः निर्धनता शब्द को सरलता में बदल देना चाहिये। जीवन में सरलता का मतलब हुआ- अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं और सीमित सुविधाओं के हिसाब से जीवन निर्वाह करना।
अपनी भौतिक जरूरतों को बढ़ाते ही हम अपने आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन स्तर में अनेक जटिलताएँ पैदा कर लेते है । कहा गया है कि एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना आसान है, लेकिन एक धनवान आदमी का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाना कठिन है। व्यक्ति जब धनवान बन जाता है तब उसका दिमाग निष्क्रिय हो जाता है। दौलत इंसान के लिये अफीम है। इसलिये सीमित आवश्यकताओं में जिन्दगी बिताने की भरपूर कोशिश करनी चाहिये। आजकल अधिकतर देश गरीबी दूर करने का कठिन प्रयत्न कर रहे हैं। वे अपनी जनता का जीवन-स्तर ऊपर उठाने में लगे हैं। लेकिन सारी प्रक्रिया को उलट देना चाहिये, वापस चलो- गरीबी, सरलता और प्राकृतिक जीवन की ओर।