अजमेर दरगाह के उत्तराधिकारी बोले-कोर्ट में सबको जाने का अधिकार
अजमेर । अजमेर दरगाह में मंदिर होने का दावा मामले में दरगाह के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि यह न्यायालय की प्रक्रिया है। न्यायालय में सबको जाने का अधिकार है। जब न्यायालय में कोई वाद प्रस्तुत किया जाता है, तो एक प्रक्रिया के तहत कोर्ट उसकी सुनवाई नियत करता है और संबंधित पार्टियों को नोटिस जारी करता है। इसमें दरगाह कमेटी को पार्टी बनाया गया है। अल्पसंख्यक मंत्रालय और एएसआई को पक्षकार बनाया गया है। हम इस पर नजर रख रहे हैं और वकीलों से संपर्क कर रहे हैं। हम अपना पक्ष मजबूती के साथ रखेंगे।
नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि वह न्यायालय की प्रकिया पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन जो परिपाटी डाल दी गई है उसमें हर दरगाह और मस्जिद में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है, हर इंसान उठकर आ रहा है, और नई-नई एप्लिकेशन लगा रहा है, वह परिपाटी हमारे समाज, हिंदुस्तान के लिए सही नहीं है। जो विवाद 150-200 साल पुराने हैं, या 1947 से पहले के हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए। हाल ही संभल में जो हुआ, वह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है।
चिश्ती ने आगे कहा कि दरगाह हमेशा अमन शांति सदभाव का स्थान है। यहां सभी की आस्था जुड़ी है। 1236 ईसवी में ख्वाजा साहब जब इस दुनिया से अलविदा हुए थे तब दरगाह बनी थी। दरगाह में अंग्रेजी हुकूमत के साथ ही हिंदुस्तान के कई राजाओं ने हाजरी दी थी। देश-दुनिया की कई लोगों की आस्था अजमेर दरगाह में है। दरगाह में लगाए गए वाद को लेकर मजबूती से लड़ा जाएगा। सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे वाद दायर किए जा रहे हैं जो हमारे देश की एकता को खंडित करना चाहते हैं।
उधर, अजमेर दरगाह के मामले में अदालत द्वारा याचिका स्वीकार करने के मामला में एआईएमआईएम प्रवक्ता काशिफ जुबैरी ने कहा कि देश में कई जगह याचिकाएं लगाई जा रही हैं। इस तरह के मामलों से देश आपसी भाईचारा कम होगा। पूरे देश में इस तरह का पेंडोरा बॉक्स खुल गया है। इन मामलों में वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन किया जा रहा है। अयोध्या और बाबरी मस्जिद मामला केवल शुरुआत थी, अब जगह-जगह याचिकाएं लग रहीं हैं। इस तरह लोग याचिका लगाते रहेंगे और अदालत स्वीकार करती रहेंगी। मामले बढ़ते जाएंगे। इस तरह की याचिकाएं धर्म विशेष को टारगेट करने के लिए राजनीति से प्रेरित हैं। इस तरह के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट को गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए।
अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह हिंदू संकट मोचन मंदिर तोड़कर बनाने का दावा अजमेर सिविल न्यायालय पश्चिम ने स्वीकार कर किया है। कोर्ट ने एएसआई दरगाह कमेटी और अल्पसंख्यक मामला विभाग को नोटिस भेजा है। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। दूसरे पक्ष को सुना जाएगा और इस मामले में अग्रिम कार्रवाई की जानी है। सिंह द्वारा अपना पक्ष रखते हुए तमाम साक्षी और जानकारियां साझा की गई। बताया गया कि दरगाह को बने 800 साल से ज्यादा हुए हैं। इससे पहले यहां शिव मंदिर था और उसे तोड़कर दरगाह का निर्माण किया गया है। उन्होंने बताया कि हर मंदिर के पास एक कुंड होता है और वह भी वहां मौजूद है।
साथ ही पास में संस्कृत स्कूल भी मौजूद है, ऐसे में इसका सर्वे करवारकर हिंदू समाज को उन्हें मंदिर का निर्माण कर पूजा का अधिकार दिया जाए। उन्होंने 1910 में जारी हुई हर विलास शारदा की बुक का हवाला भी दिया जिसमें मंदिर को लेकर कई जानकारियां साझा की गई हैं। ऐसे ही कई जानकारियां 38 पन्नो के माध्यम से रखी गई हैं। जस्टिस मनमोहन चंदेल ने इस दावे को स्वीकार करते हुए नोटिस जारी करने की आदेश दिए हैं।