मैं स्त्री हूं 

कैद पिंजरे में कोई पंछी नहीं

तेरे सिर पर सजी पगड़ी हूं 

माथे पर जो लगे वो कलंक नहीं

सुख – दु:ख की तेरी साथी हूं 

घर पड़ी कोई वस्तु नहीं 

सागर सा गहरा प्रेम है मुझमें

पत्थर की मैं मूरत नहीं

मुझसे ही रोशन तेरा घर  आँगन है

जीवन जो डूबाए वो अंधेरी रात नहीं 

मैं स्त्री हूं

तुमसे भिन्न, तुमसे अलग नहीं

तनुजा साहू /छतराम साहू

खरसिया ( छ. ग.)