जहां आम सहमति नहीं, वहां दिल्ली से तय होगा अध्यक्ष
नई दिल्ली। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में हो रही देरी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोर्चा संभाल लिया। पीएम मोदी ने अपने आवास पर अमित शाह, राजनाथ सिंह और बीएल संतोष सहित वरिष्ठ नेताओं के साथ मैराथन बैठक की। इन नेताओं ने भाजपा अध्यक्ष के चुनाव की राह में सियासी रोड़ा बने उत्तराखंड, गुजरात और कर्नाटक सहित करीब एक दर्जन राज्यों के संगठन चुनाव का सॉल्यूशन निकालने की कवायद की।
माना जा रहा है कि अब अगले दो-तीन दिनों में करीब आधा दर्जन राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा हो सकती है। इन राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष के नाम फाइनल होने के बाद ही अगले हफ्ते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर भी मुहर लग जाएगी।
नड्डा का एक्सटेंशन हो रहा पूरा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव जनवरी में होना था, लेकिन आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी ये नहीं हो सका है। जेपी नड्डा जनवरी 2020 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए थे। भाजपा के संविधान के मुताबिक जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में खत्म हो गया था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के चलते उनका कार्यकाल आगे बढ़ा दिया गया था। लोकसभा चुनाव हुए एक साल होने जा रहा है, लेकिन अभी भी तक भाजपा अध्यक्ष के नाम पर फैसला नहीं हो सका।भाजपा की संसदीय कमेटी ने 13 मार्च को जेपी नड्डा के कार्यकाल को 40 दिन का विस्तार दिया था। इस तरह से 23 अप्रैल को ये समय पूरा हो रहा है। समय करीब आता देख पीएम मोदी ने मोर्चा संभाल लिया है, जिसे लेकर प्रधानमंत्री आवास पर बुधवार को दोपहर में बड़ी बैठक हुई और 23 अप्रैल से पहले नए अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर लेने की रणनीति तय हुई है।
पीएम मोदी की बैठक से निकला सॉल्यूशन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक कर अध्यक्ष के चुनाव को लेकर मंथन किया। इस दौरान कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल और हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष के नामों पर चर्चा हुई। पीएम मोदी की बैठक में आधा दर्जन राज्यों के प्रदेश के नाम पर सहमति बनी है। माना जा रहा है कि अगले दो-तीन दिनों में करीब आधा दर्जन राज्यों के अध्यक्षों के नाम का ऐलान किया जा सकता है। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया 20 अप्रैल से शुरू हो सकती है।कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल और हरियाणा जैसे राज्यों में संगठन चुनाव नहीं होने के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष में देरी हो रही है। इन राज्यों में संगठन चुनाव संपन्न हुए बिना राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव संभव नहीं है। भाजपा के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल बनाना पड़ता है, जिसके सदस्य राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषद के सदस्य होते हैं। इसमें राज्यों की राष्ट्रीय परिषद में हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। ऐसे में जब तक संगठन चुनाव नहीं होते, तब तक न तो राष्ट्रीय परिषद का कोटा भरा जा सकेगा और न निर्वाचक मंडल ही बनाया जा सकेगा।उत्तर प्रदेश में भाजपा तय नहीं कर पा रही थी कि प्रदेश अध्यक्ष दलित और पिछड़ा वर्ग से बनाया जाए या फिर सवर्ण जाति से। सूबे में जो प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा, उसी के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा, इसलिए पार्टी फूंक-फूंककर कदम रख रही। मध्यप्रदेश को छोडक़र दूसरे बड़े राज्यों गुजरात और कर्नाटक को लेकर भी यही समस्या है। भाजपा के राज्य संगठनों की चुनाव प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए बुधवार को पीएम ने बैठक की, जिसके बाद तय हुआ है कि अगले एक दो दिन में कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष के नाम का ऐलान किया जा सकता है। सूत्रों की माने तो कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात के पार्टी अध्यक्षों के नाम पर सहमति बन गई है।
भाजपा अध्यक्ष से तय होगी आगे की दशा-दिशा
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष से पार्टी को अपनी सियासी दशा और दिशा पता चलेगी। राष्ट्रीय अध्यक्ष के जरिए भाजपा अपने सियासी समीकरण को धार देगी, लेकिन क्षेत्रीय समीकरणों को साधने को महत्व नहीं देगी। सूत्रों का मानना है कि पार्टी को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो भाजपा के विशाल नेटवर्क को कुशलता से संभाल सके। इसके अलावा संघ के पसंद का हो और मोदी-शाह का भरोसेमंद हो। इसके अलावा भाजपा नेतृत्व विपक्ष के नैरेटिव की काट खोज रही है।भाजपा का जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा 2029 का लोकसभा चुनाव उसी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इस तरह भाजपा के सियासी समीकरण में फिट बैठने के साथ-साथ जीत की इबारत लिखने वाला भी हो। भाजपा अध्यक्ष के साथ संगठन को भी स्वरूप देना चाहती है। भाजपा केंद्रीय टीम में नया नेतृत्व बनाने के लिए सचिवों और महासचिवों की टीम में कम से कम 50 फीसदी जगह युवाओं को देने पर मंथन हो रहा है। नेतृत्व की इच्छा संसदीय बोर्ड में वरिष्ठतम नेताओं को ही जगह देने की है। भाजपा संगठन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की भी कोशिश है। 2025 में बिहार और अगले साल 2026 में केरल, तमिलनाडु, असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव है। भाजपा का जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा है, उसकी पहली सियासी अग्निपरीक्षा इन्हीं राज्यों में होनी है। बिहार में भले ही भाजपा सरकार में शामिल हो, लेकिन अपने दम पर कभी भी सत्ता में नहीं पहुंच सकी। केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भाजपा कभी सरकार नहीं बना सकी है। इस तरह नए अध्यक्ष के सामने सबसे चुनौतीपूर्ण राज्यों में ही लिटमस टेस्ट होगा। इसीलिए भाजपा जेपी नड्डा की जगह मजबूत चेहरे की तलाश में है, जिसे पार्टी की बागडोर सौंपनी है।