इन्दौर | लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर कुशल शासिका होने के साथ-साथ उन्होंने परम्परा और मूल्यों की रक्षा के लिये जहां कल्याणकारी कार्य किये, वहीं महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया। इसी दिशा में इंदौर की कथक नृत्यांगना रागिनी मक्खर नृत्य और ताल के माध्यम से बालिकाओं से लेकर महिलाओं को प्रेरित कर रही है। रागिनी जब मात्र ढाई वर्ष की थी, तब से उसने भारत की परम्परागत नृत्य कला कथक के संस्कार लेना शुरू कर दिये थे। इसके बाद फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज रागिनी मक्खर अंतर्राष्ट्रीय कथक नृत्यांगना है। दुनिया के कई देशों में उन्होंने इस नृत्य कला की प्रभावी प्रस्तुति देकर जहां पुरस्कार और अवार्ड जीते, वहीं देश और प्रदेश का नाम भी बढ़ाया है।
वर्तमान में रागिनी नादयोग संस्था इंदौर के माध्यम से छोटी-छोटी बालिकाओं को भरत नाट्यम नृत्य की ककहरा से लेकर उसकी बारीकियां सीखा रही हैं। वे बताती हैं कि कथक नृत्य कला भाव, ताल और सौंदर्य का समावेश है। इन तीनों को सीखने के लिये एक प्रशिक्षु को जीवन का एक बड़ा हिस्सा व्यतीत करना पड़ता है। तब जाकर वह एक निपुर्ण कलाकार बनता है। कथक नृत्य परम्परा में लखनऊ घराने से लेकर जयपुर और बनारस घराने हैं और सभी की अपनी एक विशिष्ट पहचान है। रागिनी ने लखनऊ घराने को अपनाया। इन्होंने सर्वप्रथम शिक्षा अपनी माता से ली। उसके बाद प्रख्यात कलाकार पद्मश्री सितारा देवी, पंडित सुरेश तलवलकर, श्रीमती क्षमा भाटे, नृत्य विदुशी श्रीमती सुधा सिंह से लेकर डॉ. पूनम व्यास के सानिध्य में इसकी उच्च शिक्षा ली। और इस विधा में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
अंतर्राष्ट्रीय कथक नृत्यांगना रागिनी मक्खर रोजाना 8 से 10 घंटे कक्षाएं लेकर बालिकाओं को कथक की शिक्षा दे रही हैं। करीब पाँच हजार बालिकाओं को वे अभी तक शिक्षित और दीक्षित कर चुकी है। रागिनी का मानना है कि कथक हजारों वर्ष पुरानी एक ऐसी परम्परा है , जिसमें कथा के माध्यम से अभिनय कर अपनी बात कही जाती है। इसमें भाव, ताल और सौंदर्य तीनों का बढ़ा महत्व है। कथक नृत्य कला से कलाकार तो बनते ही हैं, यह आत्मनिर्भर बनने का भी एक ऐसा साधन है, जिसमें हम अपनी परम्परा और मूल्यों की रक्षा करने के साथ-साथ रोजगार भी पा सकते हैं। रागिनी मक्खर से सीखे हुए कई विद्यार्थी आज देश-विदेश में कथक प्रशिक्षण देकर अपनी जीविका चला रहे हैं।