नई दिल्ली । इजरायली सेना ने ईरानी परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाते हुए शुक्रवार को हमला किया, जिसने अब बड़ी जंग का रूप ले लिया है। दोनों देशों एक-दूसरे ताबड़तोड़ मिसाइल हमले कर रहे हैं। इस जंग के बीच 1980 के दशक से जुड़ी एक पुरानी घटना एक बार फिर चर्चा में आ गई है। इजरायल ने तभी भारत के साथ मिलकर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने की एक सनसनीखेज योजना बनाई थी।यह प्लान 1981 में इजरायल की इराक के ओसिराक परमाणु रिएक्टर पर किए गए हमले की तर्ज पर बनाया गया था। इसके तहत इजरायली एफ-15 और एफ-16 लड़ाकू विमानों को भारत के जामनगर और उधमपुर हवाई अड्डों से उड़ान भरकर पाकिस्तान के कहूटा परमाणु केंद्र पर हमला करना था। भारत के जगुआर विमानों को भी इस ऑपरेशन में सहयोग देना था।
खबरों के मुताबिक, भारत में उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस योजना को शुरू में मंजूरी दी थी। लेकिन कुछ हफ्तों बाद उन्होंने अपने कदम खींच लिए। इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं। उस समय भारत के पंजाब में भिंडरावाले का विद्रोह और जम्मू-कश्मीर में अशांति बढ़ रही थी। इसके अलावा, सियाचिन ग्लेशियर पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था। रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी को यह भी आशंका थी कि अगर भारत इस हमले में शामिल होता है, तो पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई कर सकता है। अमेरिका, जो उस समय अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था, ने भी इस योजना की भनक पाकिस्तान को दे दी थी। दरअसल 1980 के दशक में पाकिस्तान तेजी से अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को विकसित कर रहा था। इजरायल को इस बात की चिंता थी कि पाकिस्तान का यह हथियार उसके लिए खतरा बन सकता है। इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री मेनकेम बेगिन ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को पत्र लिखकर पाकिस्तान और लीबिया के बीच बढ़ती नजदीकियों पर चिंता जताई थी। उन्हें डर था कि पाकिस्तानी वैज्ञानिक लीबिया को परमाणु तकनीक दे सकते हैं।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और 1988 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया उल हक की मौत के बाद यह योजना पूरी तरह ठंडे बस्ते में चली गई। इंदिरा के बेटे और बाद में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने इस योजना को पूरी तरह रद्द कर दिया। इस बीच, पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम में काफी आगे बढ़ चुका था। भारत ने भी 1974 के बाद अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को फिर से शुरू किया। 1988 में दोनों देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें एक-दूसरे के परमाणु ठिकानों पर हमला न करने का वादा किया गया।आज भी हर साल 1 जनवरी को भारत और पाकिस्तान अपने परमाणु ठिकानों की सूची एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं, ताकि इस समझौते का पालन हो। इस तरह, एक समय में इजरायल और भारत की साझा योजना ने दक्षिण एशिया में परमाणु युद्ध का खतरा टाल दिया, लेकिन यह सवाल आज भी बना हुआ है कि अगर वह हमला हो जाता, तो क्या स्थिति होती।