झाबुआ जिले के पेटलावद जनपद क्षेत्र अंतर्गत आने वाले ग्राम कयड़ावद एवं थांदला सहित रतलाम जिले के ग्राम सुखेड़ा में आयोजित धार्मिक अनुष्ठान में भारतीय ज्योतिष शास्त्र के उद्भट विद्वान, मूर्धन्य ज्योतिषाचार्य, ज्योतिष रत्न, रमल शास्त्री और विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के व्याख्याकार पंडित सिद्धनाथ शास्त्री की बावनवीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज भाद्रपद कृष्ण अमावस्या शनिवार को उनकी दिव्यतम यश और कीर्ति का स्मरण किया गया, और विविध धार्मिक अनुष्ठान कर उन्हें सादर श्रद्धांजलि समर्पित की गई। उनके जन्म स्थान जिले के पेटलावद जनपद के ग्राम कयड़ावद के शिवालय सहित जिले के थान्दला नगर स्थित श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर और उनकी कर्मभूमि रहे रतलाम जिले के ग्राम सुखेड़ा स्थित श्री राम अस्थल मंदिर में उनकी स्मृति में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि समर्पित की गई, और उनके द्वारा आजीवन की गई भारतीय ज्योतिष की सेवाओं का स्मरण किया गया। इस मौके पर ब्राह्मणों को भोज्य पदार्थ समर्पित कर गौ शालाओं में गायों को गौ ग्रास भी प्रदान किया गया।
उल्लेखनीय है कि सुविख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित सिद्धनाथ शास्त्री झाबुआ जिले के पेटलावद जनपद क्षेत्र अंतर्गत आने वाले ग्राम कयड़ावद में जन्मे थे, और बाल्यावस्था में ही उन्होंने काशी में प्रवास कर संस्कृत भाषा सहित फलित ज्योतिष, रमल शास्त्र एवं कर्मकाण्ड का गहन अध्ययन किया था। विद्याध्ययन पूर्ण कर उन्होंने ग्वालियर स्टेट के अंतर्गत आने वाले रतलाम जिले के ग्राम सुखेड़ा को अपनी कर्मभूमि बनाया और आजीवन ज्योतिष शास्त्र की सेवा में संलग्न रहे। तत्कालीन सुखेड़ा ठिकाना के राज दरबार द्वारा उन्हें राज ज्योतिषी का भी सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया गया था, और 9 अक्टूबर सन् 1928 को सुखेड़ा स्थित श्री राम अस्थल मंदिर का पुजारी नियुक्त कर दिया गया था। पंडित सिद्धनाथ शास्त्री द्वारा रचयित भृगुसूत्रम नामक हिंदी ग्रंथ पाणिनि विश्वविद्यालय के अंतर्गत ज्योतिष शास्त्र की शास्त्री परीक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
उन्होंने महर्षि वाल्मीकि रामायण में वर्णित आदित्य हृदय स्तोत्र का भावानुवाद और श्री खेमराज , कृष्णदास प्रकाशन बंबई से वेदोक्त रुद्राष्टाध्यायी, शुक्ल यजुर्वेदीय त्रिकाल संध्या और सौलह सोमवार व्रतकथा का भी सरल भाषा में अनुवाद कर प्रकाशन कराया था।
पंडित सिद्धनाथ शास्त्री द्वारा भगीरथ प्रयास कर तत्कालीन ठिकाना सुखेड़ा में श्री जीवाजी राव संस्कृत पाठशाला की स्थापना की गई थी, और निर्धन ब्राह्मण बालकों को प्रधानाचार्य के रूप में संस्कृत, व्याकरण, साहित्य, ज्यौतिष एवं कर्मकाण्ड का विशद अध्ययन कराया गया था।
शास्त्रीजी की पुण्यतिथि पर उनके जन्म स्थान जिले के पेटलावद जनपद के ग्राम कयड़ावद और उनकी कर्मभूमि रहे रतलाम जिले के ग्राम सुखेड़ा में भी उनकी स्मृति में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए, और उनके द्वारा आजीवन की गई भारतीय ज्योतिष की सेवाओं का स्मरण किया गया।