फ्रांस । नेपाल के उग्र प्रदर्शनों के बाद फ्रांस भी विरोध की आग में झुलस रहा है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ देशभर में “ब्लॉक एवरीथिंग” आंदोलन शुरू हुआ, इसमें करीब एक लाख लोग सड़कों पर उतर आए। राजधानी पेरिस सहित कई शहरों में आगजनी, तोड़फोड़ और नारेबाजी से हालात बिगड़ गए। सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए मैक्रों सरकार ने करीब 80,000 सुरक्षाबलों को तैनात किया है, जिनमें से 6,000 सिर्फ पेरिस में मौजूद हैं। अब तक 200 से अधिक उपद्रवियों को हिरासत में लिया गया है।
ब्लॉक एवरीथिंग का सीधा संदेश है, अगर व्यवस्था जनता के काम नहीं आ रही, तब उस व्यवस्था को रोक दो। शुरुआत दक्षिणपंथी संगठनों ने की थी, लेकिन अब वामपंथी और अति-वामपंथी गुट भी इसमें शामिल हो गए हैं। आंदोलनकारियों ने परिवहन तंत्र, हाईवे और शहरों को ठप करने का ऐलान कर दिया है।
बात दें कि फ्रांस की राजनीति पहले से ही संकट में है। हाल ही में संसद ने प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू को विश्वास मत में हरा दिया, इसके बाद राष्ट्रपति मैक्रों को अपने कार्यकाल का पाँचवाँ प्रधानमंत्री, सेबास्टियन लेकोर्नू नियुक्त करना पड़ा। इसतरह के माहौल में सड़कों पर ये बगावत सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो रही है।
विशेषज्ञ इस 2018 के “यलो वेस्ट” विद्रोह की याद दिलाने वाला आंदोलन मान रहे हैं। उस समय भी ईंधन की कीमतों से शुरू हुआ गुस्सा, राष्ट्रपति मैक्रों की नीतियों के खिलाफ जनआंदोलन बन गया था। मौजूदा हालात भी कुछ उसी दिशा में बढ़ते नजर आ रहे हैं। गृह मंत्री ब्रूनो रेटायो ने बताया कि बोर्डो में करीब 50 नकाबपोशों ने हाईवे रोकने की कोशिश की, जबकि टूलूज़ में केबल में आग लगाने से ट्रैफिक बाधित हुआ। पेरिस में 75 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। कई बड़े शहरों— मार्से, मोंपेलिए, नांत और लियोन— में सड़कें पूरी तरह जाम हो गईं।