-दो निचली अदालत के जजों को ट्रेंनिंग के आदेश
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने 6 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में आरोपी दंपत्ति को मिली जमानत को रद्द करते हुए निचली अदालतों की कार्यवाही पर कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा कि निचली अदालतें तय प्रक्रिया का पालन करने में नाकाम रहीं और आरोपियों के आचरण को नजरअंदाज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसनुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस एसवीएन भारती की बेंच ने आदेश दिया कि कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिश्नल चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट (एसीएमएम) और सेशन जज, दोनों को दिल्ली जुडिशल एकेडमी में कम से कम सात दिनों की ट्रेनिंग लेनी होगी। साथ ही, आरोपी दंपत्ति को दो हफ्तों के भीतर सरेंडर करने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में दिल्ली पुलिस की लापरवाही पर भी सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी (आईओ) की भूमिका संदिग्ध है और उसका रुख बहुत कुछ कहता है। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया है कि आईओ की भूमिका की निजी जांच की जाए और विभागीय कार्रवाई शुरू की जाए।
मामला क्या है?
एक निजी कंपनी का आरोप है कि आरोपी दंपत्ति ने जमीन के सौदे के लिए 1.9 करोड़ रुपये लिए थे। बाद में पता चला कि जमीन पहले ही बिक चुकी थी और गिरवी रखी गई थी। कंपनी के मुताबिक, ब्याज समेत उसकी रकम 6 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुकी है।
2017 में कंपनी ने शिकायत दर्ज कराई थी और 2018 में एफआईआर दर्ज हुई। हाईकोर्ट ने 2023 में अग्रिम जमानत खारिज करते हुए आरोपियों के आचरण को गुमराह करने वाला बताया था। बावजूद इसके, नवंबर 2023 में एसीएमएम कोर्ट ने आरोपियों को जमानत दे दी और अगस्त 2024 में सेशन कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सर्वोच्च न्यायालय की डबल बेंच ने कहा कि निचली अदालतों ने आरोपियों के आचरण और हाईकोर्ट की पूर्व टिप्पणियों पर विचार नहीं किया। बेल प्रक्रिया में हुई गड़बड़ियों को भी अदालत ने गंभीर माना। कोर्ट ने बताया कि अक्टूबर 2023 में आरोपी औपचारिक रूप से कोर्ट में पेश हुआ था, लेकिन बिना किसी अंतरिम आदेश के उसे छोड़ दिया गया, जबकि नियमित बेल बाद में दी गई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, कि जमानत का फैसला तथ्यों और आरोपी के आचरण पर आधारित होना चाहिए, न कि मशीनी तर्कों पर। इसी के साथ ही अदालत ने एसीएमएम, सेशन जज और हाईकोर्ट के बेल आदेशों को रद्द कर दिया।