इंदौर की पेचान रहा है अपना टेम्पू। पेले काले ढूस और पीले पट में रंगता था। फिर फुल पीले कलर में भी रंगा टेम्पू। आइट-साइट में तुलसी पेलवान का नाम लिखा गया। तो देवेनसिंग यादव, अब्दुल रऊफ, प्रमोद टंडन का नाम टेम्पू के कारण ही चला है। अपन जैसो ने पढ़ना लिखना इनके नाम से ही सीखा है। चलो भिया चलने टाइम हो गया है।
गाड़ी तो रस्ते में भी भरा जाएगी। इधर से रस्सी हिची और उधर से ऐस्सीलेटर मारा। लो पेलवान भट-भट-भट-भट-भट-भट टेम्पू चल्लू हो गया है। चलना भिया टेसन, छावनी, जीपीओ, अस्पताल। मालवामील, पाटनीपुरा। चल ए बारीक, उन मेडम को बिठा। एलआयसी जाएगी ये। गुजराती कॉलेज की छोरियों को आगे की साइड भेज।
बाबकट वाली से पेसे मत लेना। तेरी भाभी समान है। भोत सारी लड़कियां डायरेक्ट टेम्पू वाले के दिल में जाकर बैठी है। अरे भिया छुट्टे निकालो। बोनी बट्टे का टाइम है। अरे बेंजी, अपने बच्चे को गोद में लो। भिया जरा थोड़ा दबके सरक के। अरे अभी तो एक साइट छह-छह सवारी बैठी है। पांच-छह खड़ी हो जाएगी। दिल में जिगो होनी चीये।
यॉर्क के टेप पे लपक के ‘फूल और कांटे’ की कैसेट आगे-पीछे से रिपीट हो रही है। ‘धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है’ गाने के साथ मुंह में गुटखा पकाकर, टेड़ा बैठकर पीकते-थूकते ‘पिलोट’ गाड़ी भिन्नाट भगा रिया है। लगत में कांच में वो ‘तेरी भाभी’ को देख रिया है। उसने कल्ले कटाके, मिथुन इष्टाइल में बाल मशीन से सेट करवाएं हैं।
ड्राइवर का ‘काम’ के साथ धंदे पर भी फुल फोकस है। चल ए बारीक ! सवारी बिन रे। जीएसटीआय के छोरों को लटका। पेसे मत मांगना। पेसे मांगने पर मारते हैं। गाड़ी चले जा रही है। बंबई बजार से मालगंज, राजमोहल्ला हो के लाबरिया भेरू से बस कलारिया पहुंचने वाली है। मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना, सड़क पर चलती है, बनकर हसीना।
LALIT BHAWSAR