हूँ मैं अनाड़ी, ये कहता हूँ मैं अब,
हुनर धोखा देने का, न सीखा अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक।
मैं देखूं जिधर, फ़रेबी दुनियां है दिखती,
फ़रेब मैंने किसी से, पर किया न अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
बढ़ने को आगे, लोग करते हैं झूठे वादे,
झूठे वादे किसी से, मैंने किया न अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
देखूं जिधर, सौदागरों की दिखती है दुनियां,
व्यापार करता हूँ मैं भी, पर धोखा किसी को दिया न अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
सीने में राज़ दफ़न है बहुत, उन्हें निकालूं मैं क्यों,
दफ़न पन्नों को पढ़ने की कोशिश, न कि है अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
ज़िन्दगी आगे बढ़ने का नाम है,
आगे हूँ बढ़ता, मुड़कर कभी, न देखा अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
माना ज़माना, शातिर और बुरा है,
हर इंसान में सिर्फ बुराई, नही देखा पर अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
ज़िन्दगी में क़ामयाबी, और नाकामियां आती जाती है रहती,
गिरने के डर से, आगे बढ़ने का जज्बा, कम किया न अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
कभी जीता, कभी हुई हार मेरी,
पर जिसे चाहा दिल से, उसको पाया है अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक….
करता हूँ हर काम मैं दिल से हमेशा,
रिश्तों की अहमियत को मैं जानता हूँ,
है जेब खाली मेरी तो शायद, इसलिये अभी तक,
इसलिये अभी तक, इसलिये अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक,
हूँ मैं अनाड़ी, ये कहता हूँ मैं अब,
हुनर धोखा देने का, न सीखा अभी तक,
करता हूँ मेहनत, दिन रात मैं तो,
बुरे काम को, मैंने किया न अभी तक।
राजीव रंजन सिन्हा “कुंदन”