देवों को जाति धर्म में बांटना समाज में विष वमन करने के समान : धर्माचार्य

प्रयागराज,22 दिसम्बर (वार्ता) हिन्दुओं के अराध्य पवन सुत हनुमान की जाति धर्म को लेकर राजनेताओं के बयानो से आहत धर्माचार्यो ने इस परम्परा पर अविलंब रोक लगाने की मांग करते हुये चेतावनी दी है कि देवों पर टीका टिप्पणी करना समाज में विष वमन करने के समान है और राजनीतिक दलों को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा।

धर्माचार्यो का कहना है कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए राजनेताओं ने इंसानों की तरह भगवान को भी जाति और धर्म के बीच बांटकर अपने दोहरे चरित्र को उजागर किया है जो समाज में विष वमन का कार्य कर रही है। राजेनता शुरू से समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांट कर अपना उल्लू सीधा करते आये हैं। नेताओं के लोकलुभावने वादों से सतर्क हो चुकी जनता पर कमजोर पकड़ देख लोकसभा चुनाव से पहले राजनेताओं ने तरकस से तीर अब देवताओं की तरफ शुरू कर दिया है।
उन्होंने कहा ‘हनुमान जी” भगवान हैं, उन्हें राजनीतिक स्वार्थ के लिए धर्म और जाति में बांटना सर्वथा धर्म विरूद्ध है। धर्मशास्त्र किसी को यह इजाजत नहीं देता कि वह किसी भी धर्म की सर्वोच्च शक्ति(भगवान) को जाति और धर्म में बांटे। हिन्दू, मुस्लिम, सिख और इसाई धर्मो को मानने वाले सर्वोच्च शक्ति के सामने नतमस्तक होते हैं क्योकि उसने संसार में जीवन दिया और उनका संचालन करती है। सर्वोच्च सत्ता को राजनीति में घसीटना अथवा उनके नाम का इस्तेमान करना धर्म के विरूद्ध है।
साधु संंतो की जानीमानी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि भगवान राम के नाम पर लोगों को ठगने वाले भाजपा नेता अब वोटों के लिए हनुमान की भी जात बता रहे हैं। इस प्रकार की राजनीति से भाजपा का मूल चरित्र देश के सामने आ गया है कि भाजपा किस तरह से ऐन चुनाव के समय जनता को भरमाने का काम कर रही है।
उन्होने कहा कि आज राजनैतिक स्वार्थ के लिये भगवान हनुमान को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में बांटने में भाजपा के जो नेता लगे है, उन्हें सबसे पहले अपने ऊपर नजर डालना चाहिये। महंत ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए आम आदमी को जाति और धर्म के बीच उलझा कर वोट लेने तक तो ठीक है लेकिन देवी- देवता को राजनीति में घसीटना सर्वथा अनुचित है। धर्मशास्त्र भी इसकी अनुमति नहीं देता।