अनोखी सीख

मैं नहीं सिखा पाऊँगी 

अपनी बेटी को अपमान 

बर्दाश्त करना,

एक ऐसे आदमी जो उसका 

सम्मान न कर सके,

उसको निभाना,

कैसे सिखाए कोई माँ 

अपने लहुँ से सीचे पौधे को,

पति की मार खाना 

सौभाग्य की बात है!

मैंने सिखाया हैं कर्तव्य के लिये 

रीढ की हड्डी झुका देना

पर मान भंग हो तो 

अंग-भंग कर देना।

हाँ,मैं बेटी का घर बिगाड़ने 

वाली बहुत बुरी माँ हूँ।

क्योंकि मैं नहीं देख 

पाऊँगी उसको दहेज के लिए 

लालच की आग में जलते हुए।

मैं विदा कर के भूल नहीं पाऊँगी,

मैं तो अक्सर उसका 

कुशल क्षेम पूछने जाऊँगी।

हर अच्छी-बुरी नज़र से, 

ब्याह के बाद भी उसको बचाऊँगी।

बिटिया को सदैव मैं विरोध 

करना सिखाऊँगी।

ग़लत मतलब ग़लत होता है,

अन्याय मतलब अन्याय 

होता हैं यही बताऊँगी। 

देवर हो,जेठ हो,या नंदोई, 

पवित्र नज़र से देखेगा 

तभी तक होगा भाई।

ग़लत नज़र को नोचना सिखाऊँगी, 

ज़मी पर बैठना सिखलाया हैं,

ऐसो को मिट्टी में मिलाना भी

सिखाऊंगी,

ढाल बनकर उसकी 

ब्याह के बाद भी खड़ी हो जाऊँगी।

डोली चढ़कर जाना और 

अर्थी पर आना 

ऐसे कठिन उलझले शब्दों के 

जाल में उसको नहीं फसाऊँगी।

मैं उसे जीने की हर राह दिखाउंगी,

बिटिया मेरी पराया धन नहीं, 

न कोई सामान,

जिसे बोझ समझ उतार आउंगी

न ही  गैरों को सौंप कर गंगा नहाऊँगी।

अनमोल है वो अनमोल ही रहेगी,

हीरा हैं वो सदा मूल्यवान रहेगी,

रुपए-पैसों से जहाँ इज़्ज़त मिले 

ऐसे घर में मैं अपनी बेटी 

नहीं ब्याहुँगी।

औरत होना कोई अपराध नहीं, 

खुल कर साँस लेना मैं 

अपनी बेटी को सिखाऊँगी,

आसमा में उड़ना सिखाऊंगी

दिखलाऊंगी वो राह 

जंहा सपने सजते संवरते हैं।

मैं अर्थ अनर्थ में भेद उसको

बतलाऊंगी,

मैं अपनी बेटी को अजनबी 

नहीं बना पाऊँगी।

हर दुःख-दर्द में उसका 

साथ निभाऊँगी, 

कर्तव्य की जंजीर से बांध उसे 

मरने को नही छोड़ जाऊँगी

ज़्यादा से ज़्यादा एक 

बुरी माँ ही तो कहलाऊँगी।

पर मैं अपनी बेटी को 

ऐसे नही छोड़ पाऊंगी।

डिम्पल राकेश तिवारी

अय्योध्या-उत्तर प्रदेश