मन विहग नभ में उड़ जाए
पर काट पर नहीं जीना है
प्राण हौसलों में भर जाये
वही सुधा रस पीना है।
यह जीवन है जैसे दरिया
मधु स्वप्न जीने का जरिया
क्षणभर रुकता नहीं समय
निशिदिन चलता यह पहिया
स्नेह लेप के वर्षण से यह
हृदय घाव फिर सींना है
प्राण हौसलों से भर जाए
वही सुधा रस पीना है।
यह मन आशाओं का घन
झर-झर बरसे बन सावन
माना ओलावृष्टि दुखों की है
थकता कब है यह अंतर्मन
खोकर इसको मत पछताना
यह जीवन एक नगीना है
प्राण हौसलों से भर जाये
वही सुधा रस पीना है।
टूट गयी एक आस तो क्या?
कुछ नहीं तेरे पास तो क्या?
पग पग आगे बढ़ता चल तू
जीवन है वनवास तो क्या?
कायर सम न पीठ दिखा
फौलादी तेरा सीना है
प्राण हौसलों से भर जाए
वही सुधा रस पीना है।
प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश