परछाई भी लौटती नही

 एक दिन में हजार बार

 देखती हूं तस्वीर को तेरी 

कमबख्त एक बार भी 

क्यों बोलती नहीं ।

बैठी है तस्वीर में तू 

इस कदर मेरी जान

 मुस्कुराती तो है तस्वीर 

पर मुंह खोलती नहीं ।

जानती हूं उस लोग से 

कोई वापस आता नहीं ।

कमबख्त याद का क्या करूं 

जो जाती ही नहीं ।

बरसों हो गए तुझे 

मुझसे जुदा हुए ।

आंगन पिता का क्या 

तुझे याद आता नहीं ।

जिस दिन से तू छोड़ कर 

हमको चली गई।

 मां तेरी बोलती नहीं 

गुमसुम सी रहती है ।

क्षण भर को भी तू 

हमसे जुदा ना होती थी ।

कहती थी तेरा आंगन 

कभी नहीं छोडूंगी 

क्या उस लोक से तू 

 सूना आंगन देखती नहीं ।

मां पिता की याद भी क्या

 तुझ को आती नहीं ।

आजा कभी तो एक पल के

 वास्ते बाहों में 

पर तू तो सपनों में भी 

झलक दिखाती नहीं 

चुपचाप पूछ लेते हैं ।

आंसू नैनो के 

उस लोक गई तो

 परछाई भी लौटती नहीं।

गरिमा राकेश गौत्तम

कोटा राजस्थान